एक पिता और उसके पुत्र की कहानी। एक दिन पिता ने सोचा की मुझे अपने बेटे को हमारे जीवन का मतलब समझना है। तब उसने एक तरकीब निकली। उसने अपने बेटे हो एक चमकीला पत्थर दिया और कहा , इसे तुम बाजार में बेचने के लिए ले जावो, पर बेचो मत, जो भी इस पत्थर को खरीदना चाहेगा उसे तुम खाली दो उंगली दिखादो, वह अगले ही दिन वह चमकीला पत्थर लेके बाजार गया , बाजार में उसे एक महिला ने पूछ की ये पत्थर कितने का , उस लड़के ने दो उंगली दिखाई , तब उस महिला ने कहा २०० रुपए ठीक है, फिर वह दौड़ते हुए घर आया , और अपने पिताजी से कहा की इस पत्थर के मुझे एक महिला २०० रुपए दे रही थी। पिताजी ने कहा अच्छा ठीक है। दूसरे दिन उसे एक म्यूजियम में जाने को कहा , बच्चा अगले दिन उस पत्थर को लेके म्यूजियम में गया , वहा एक आदमी ने उस पत्थर को देखके कहा की इसकी किम्मत क्या है। उस लड़के ने दो उंगली दिखाई, तब उस आदमी ने कहा , २००० हजार इसकी किम्मत, लड़के ने कहा हा। फिर वह लड़का घर आया और अपने पिताजी से कहा , आज तो एक आदमी ने इसकी किम्मत तो बीस हजार बताई , पिताजी ने हंसते हुए कहा ठीक है। फिर पिताजी ने उस बच्चे को एक किम्मती पत्थरो के दुकान में जाने को कहा , वह बच्चा एक पत्थर के दुकान में गया , बच्चे के हात में पत्थर देखके दुकान दार बोला , अरे वाह, यह तो वही पत्थर है जिसे मैं कितने सालो से ढूंढ रहा था, बताओ तुम इसे कितने को बेचोगे , बच्चे ने दो उंगली दिखाई, तब दुकानदार बोला २० लाख इसकी किममत है, ठीक है। तुम यह पत्थर मुझे बेच दो, में तुम्हे २० लाख रुपए दूंगा , बच्चे ने कहा ठीक है , मैं अपने पिता से पूछ के आता हु, बच्चा घर आया और अपने पिता से कहा , अब तो ये पत्थर २० लाख में बिक रहा है। पिता ने कहा इस सभी प्रयोग से तुम्हे क्या सिख मिली , यह सुनकर बच्चा शांत हुवा, और अपने पिता से कहा आप ही मुझे बताओ , तब पिता ने कहा की , हर मनुष्य के अंदर कुछ न कुछ, किसी न किसी चीज की कला होती है, उसे हमे पहचानना आना चाहिए, हमारी किम्मत जहा नही ही वहा रुकने का कोई फायदा नही है , तो हमारे गुणों को पहचानो और अपनी किम्मत बडावो।
इस कहानी का बोध। इस कहानी से हमे यह सिख मिलती है। जहां अपनी किम्मत नही हो , वहां मत रुको, अपने हुनर और गुणो को पहचाने .
!!धन्यवाद!!
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