एक छोटा बच्चा करीब १२ या १३ साल का एक ढाबे पे काम करता था, लोग खाना खाने के बाद उनकी प्लेट उठता था, उनको पानी देता था, इस काम के कुछ पैसे मिलते थे , जिससे वह अपने घर का गुजारा करता था, एक दिन आदमी वहा खाना खाने को आया , खाना खाने के बाद उसने उस बच्चे को ५५० रुपए टीप दी, उस बच्चे ने उसमें से केवल ५० रुपए ही लिए, और ५०० रुपए वैसे ही रखे, उस इंसान ने ५०० रुपए लिए चला गया, दो दिन बाद वह फिर से वही खाना खाने आया , खाना खाने के बाद बिल भरा , और वापस उसने ५५० रुपए टीप रख दी, बच्चे ने फिरसे केवल ५० रुपए ही उठाए और ५०० रुपए वापस रख दिए, इस मूर्ख बच्चे की मूर्खता दिखाने के लिए अब वह आदमी रोज अपने नए दोस्तो को खाना खाने लेके आता, और अंत में वह उस बच्चे की मूर्खता अपने दोस्तो को दिखाता सब उस बच्चे पे हसकर लोकल जाते, यह खेल कई महीनो से चलता रहा। एक दिन उस बच्चे के साथ काम करने वाले लड़के ने कहा की तुम तो सचमुच मूर्ख हो, वह आदमी रोज पांसो और पचास की नोट रखता है, पर तुम केवल पचास की नोट ही उठाते हो, ऐसा क्यों , उसपे उस छोटे बच्चे ने जवाब दिया जिस दिन मैं ५००रूपये की नोट उठाऊंगा उस दिन ये खेल खल्लास हो जायेगा , आज तक मै पचास रुपए उठाकर ५००० हजार बना लिए है, वह आदमी मुझे मूर्ख समझता है , और मेरी मूर्खता को दिखाने के लिए रोज किसी न किसी को यहां खाना खाने लेके आता है। बच्चे की बात सुनकर वह लड़का चुप हो गया और उसने कहा की मूर्ख तो वह आदमी निकला जो रोज ५० रूपये दे जाता है और खाने का बिल भी भरता है। इस बात पे वह दोनो जोर जोर से हसने लगे।
इस कहानी का बोध। जीवन में कभी कभी ऐसा भी समय आता है , जहा समझदारी से नही मूर्ख ता से भी काम चलाना पड़ता है। उस परिस्थिति में हमे अगर मूर्ख बनकर फायदा हो रहा है, तो क्यों न मूर्ख बने। अंत में फायदा तो अपना ही होना है।
!!धन्यवाद!!