यह कहानी है प्रेम और विश्वास की . यह कहानी है संत कबीर की है. एक दीन संत कबीर अपने भक्त जन के साथ भजन कीर्तन कर रहे थे . जेसे ही भजन खतम हुवा अन्होने सभी को आग्रह किया की सब खाना खाके जाना . ओर कबीर ने अपने बीबी से सभी लोगो के लीये खाना बनाने के लिये कहां .सॊ दोसो लोगो का खना बनाना था, कबीर की बीवी ने रसोई घर मे देखा ' तो कुछ भी नही था खाना बनाने के लीये . सब राशन खतम हुवा था . कबीर की बीबी ने यह बात कबीर को नही बताई . बताती भी कैसे . कबीर के सम्मान का भी तो खयाल रखना था . वह दुकान दार के पास ग ई ओर उधार पे राशन देने को कहां . दुकानदार ने राशन देने सो मना किय कहां की पहीले का उधार उभी तक दीया नाही . और अभी तुम्हे और उधारी चाहिये . ऐसे तो मेरा दीवाला नीकल जायेगा . और मे उधारी नही दे सकता . कबीर के बीबी ने बहुत विनती की . सभी भक्ता जन घरपे हे ओर कबीर ने 3नसे आग्रह किया हे की खाना खाके जाना . यह कबीर के सम्मान का प्रश्न है . कृपया राशन देदो . चाहे तुम मुझसे कुछ भी मांगलो . यह सुनकर दुकान दार ने सोचा और उस से कहां की ठीक है . मै तुम्हे राशन देता हु और पीछला उधार भी भुल जाता हु . पर तुम्हे आज रात मेरे साथ सोना होगा (कबीर की बीबी जो थी ' सुंदर तो रही होगी . नही भी सुंदर रही हागी तो . कबीर के सानिध्य . उनके सथ मे रहके सुंदर तो रहेगी . ) जरा ही सोचे बीना कबीर के बीबी ने कहां की ठीक हे आज रात को आ जाऊंगी . अभी मुझे राशन देदो . असने सभी को खाना खीलाके तृप्त किया . और फीर रात को सज धज के कबीर के सामने बैठी . बरसात भी बहुत हो रहि थी. कबीर ने कहां क्या बात है . आज कुछ हे क्या . आज तुम इतनी सजी हो . तो कबीर के बीबी ने कहां अब तुमसे क्या छुपाना . दुकान दार ने राशन देने से मना किया था. राशन के बदले आज रात सोने को बुलाया . कबीर ने कहां ठीक है . पर तुम जवोगी कैसे बरसात तो बहुत जोरो से हो रही है . भीग के जावोगी तो उसे अच्छा भी नही लगेग . चलो मै तुम्हे घोड आता हु रात भी बहुत हुई है . छाता भी एक हे . दोनो एक ही छाता मे चले गये . वहां दुकान दार उसकी राह देख रहा था . उसके मन मे बहुत सारे विचार चल रहे थे . की कबीर के बीबी ने जराही संकोच बीना हा करदी . क्या कोई प्रतीवृता ऐसा कर सकती है . वह मन ही मन मे डर भी रहा था . कबीर ने उसे घर तक ले आया खुद भीगते रहे पर उसने उपने बीबी को नही भीगाया . कबीर नो कहां तुम हो आवो अपना काम नीपटा आवो मे यही राह देखता हु . रात भी बहुत है ओर बरसात रुकने का नाम नही ले रही है . और छाता भी एक है . इतने मे दरवाजे पे दस्तक दी . अब तो वह बहुत ही हैरान हुवा . उसने दरवाजा खोला तो कबीर की बीबी सामने खडी थी . वह बहुत ही हेरान हुवा . उसने घर उन्दर लेके बीठाया और देखा की इतनी तेज बरसात मे भी यह भीगी नही . बारीश का एक भी बुंद तुम्हरे बदन पे नही हे तूम तो पुरी तरह से सुखी हो . यह कैसे हो सकता है . कबीर के बीबी ने दुकानदार से कहां . की भीगती कैसे कबीर जो साथ ले आये ,खुद भीग ते रहे ओर मुझे जरा भी नही भीगाया . दुकानदार डर गया उसके पेरो से जमीन खीस क गई .. छाती की धकधक बड गई. . उसने कहां की कहा हे कबीर . कबीर के बीबी ने कहा . वे तो बाहर ही ईन्तजार कर रहे हे . पर तुम तुम्हार काम करलो वापस . घर जाके ब्रम्ह मुहर्त पे उठना है . दुकान दार को मन ही मन मे बहुत ही शर्म आई . उसने दरवाजा खोला और कबीर समने खडे थे, वह दुकनदर से बोले तु तेरा काम करले संकोच मत कर। वह दुकनदर झट से चरनो मे गीर पडा . ओर उन दोनो से क्षमा मांगी ..
कबीर जैसे संत कभि कभि हि एस संसर मे जन्म लेते है