एक लाडकी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया , बहुत की काम उम्र मे उसे यह पुरस्कार मिला , उसके बाद उसने और अगे की शिक्षा लेने की सोची, घर से दूर एक गाव था, वाहा एक गुरुजी राहते थे, वाहा जाके उसने आगे की शिक्षा के लिये अपनी सहमती जाताई, गुरुजी ने देखा और उसे काहा, जावो रस्ते पर उखड़े हुवे पत्थर कुटो और नाय रस्ता बनावो , रस्ता बहुत खराब हुवां है, रोज रोज उखड रहा है , तुम उखडे हुवे पत्थर को कुटो और नया रस्ता बनावो ओर द्यांन रहे जब तक मैं न काहू रुकने के लिए तूम रुकना नही , और किसी भी समय मैं तुमसे बोलू यह करने के लिए तुम तयार रहना , उसने सोचा नाही कोई फार्म भरने दिया नाही कोई पुस्तक पडने दी यह कैसे गुरू हैं.वह सुबह सुबह चली गई , मन में सोचा की कैसा गुरु है , कैसा काम दिया है करने के लिए, मैं नोबेल विजेता हु, यह सोचकर वह पत्थर कुटने चली गइ.धूप निकल आई वह पत्थर कुटते कूटते थक गई , उसका शरीर पसीने से भीग गया, हात पे छाले आ गए , उसने सोचा अब ये कहेगा की रूक जवो, उसे तरस आएगा , मैं एक लड़की हु , मुझसे पत्थर कूटने के लिए लगा दिया , ये कोन सी शिक्षा है, और वह बाहर बैट के सिगरेट पी रहा है । वह देखने भी न आया की मै कोतनी मेहनत से ये पथ्यर कुट रही हू करी ब करीब शाय के ८ बजे उसने रुकने को कहां, वह थक के उसके सामने आई तो उस गुरु ने उसे देखा तक नही, वह अंदर चली गई आंख मे थोडे असु भी थे हात पे छाले पडे थे . उसने मन ही मन मे सोच की कल से यह काम नही करूंगी। उस गुरुजी ने फिर रात को २ बजे उसे उठाया और काम पे लगजावो ऐसा कहां . वह लडकी फीर से काम पे लग गई . कभी न खत्म होने वाला रास्ते के पथ्यर कुटने लगी . उसने सोचा की ऐसा करके तो मे मर जाऊंगी . पर गुरू को जरा भी फर्क नही पड रहा था. वह तो मस्त था दीन भर सिगरेट बीडी का धुवा उडाता रहता था . ऐसा करते करते 3 महीने बीत गये . उस लड़की ने सोचा की तीन महीने बीत गये पर मै कुछ भी नही साख पाई . फीर एक दिन गुरु ने कहां तुम जावो तुम्हरी शीक्षा पूरी हो गई . वह खुशी खुशी घरपर गई . जब वे घर के अंदर गई तो उसे घुटन जैसे होने लगी सभी महंगी वस्तू अब उसे न के बराबर लगने लगे . सब नश्वर लगने लगा . उसके मन के अंदर से सभी प्रकार के दोष दुर जो हो गये थे . लोभ ' क्रोध' मोह . इर्ष्या वह एकदम नई बनकर आई थी . उस लड़की को अब पता चला की तीन महीने से वह गुरुजी मेरे अंदरसे सभी दुशीत वीचारों को बाहर निकाल राहा था . उसने वापस जाकर उस गुरू के चरण स्पर्श कोये . और आर्शीवाद लाया .
इस कहानी का बोध . जीस को भी जीवन का सत्य समझ आया फीर उसके सामने सभी प्रकार के पुरस्कार नीरर्थक है . सब नश्वर है . खाली सत्य ही अमर है .