सफल ता का राज। एक दिन एक आदमी एक तपस्वी के पास आया , और उसने उस साधु से कहा की सफल ता का क्या राज है ये मुझे जानना है। साधु ने कहा ठीक है, कल सुबह आना , वो आदमी , सबेरे सबेरे उस साधु के पास आ गया , उस तपस्वी ने कहा हमे नदी के पास जाना है, वे दोनो नदी मे चले गए , नदी आने पर वह साधु बोला , मेरे साथ अंदर चलो, वह दोनो नदी के अंदर चलने लगे , पानी जब गले तक आगया , तब उस साधु ने अचानक उसकी गर्दन पानी में डुबोई, साधु उस आदमी से ताकतवर था, वह आदमी पानी में तड़प रहा था, सांस लेने की कोशिश कर रहा था, उसका शरीर अब कला नीला पड़ने लगा , तभी साधु ने उसे बाहर निकाला, वह आदमी हफते हुवे जोर जोर से सांस लेने लगा, उस आदमी को समझ नही आ रहा था की इस साधु ने मेरे साथ ऐसा क्यूं किया, और इससे कोनसा सफल ता का राज मालूम पड़ने वाला है।तभी वह तपस्वी ने उस आदमी से पूछा की पानी के अंदर तुम्हे सबसे ज्यादा किसकी जरूरत थी। उस आदमी ने कहा सांस की , तब उस साधु ने कहा , सफल ता भी ऐसी ही आती है। जब तुम दिल जन से चाहोगे , उसकी कमी होने पर अस्वस्थ होगे , तभी तुम उसको कड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम से पवोगे , यही है सफल ता का राज। उस आदमी को अब सफलता का राज समझ में आ गया उसने उस तपस्वी के पेर छु कर आशीर्वाद लिया, और अपने मार्ग पर चला गया।
इस कहानी का बोध। यह कहानी सुनकर हमे ये बोध हुवा, की अगर हम पूरी ताकत और इच्छा शक्ति से कुछ भी हासिल करना चाहोगे तो वे हासिल हो जायेगा , उसके लिए कठिन परिश्रम, एकाग्रता , और हमारा उद्देश , होना चाहिए।
!!धन्यवाद!!