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शुक्रवार, 3 मार्च 2023

Ek Raja aur Bhikari ki Kahani (Daan Ka Arth)/एक राजा और भीकरी की कहानी. (दान का अर्थ )

 एक राजा और भीकरी की कहानी है . एक गाव मे एक भीकारी रहता था भीक मांग के वह अपना गुजारा करता था . पर वह भीकारी बहुत ही चालाक था।  ओ जब भी भीक मागनें जाता था तब वह अपने भीक्षा पत्र मे कुछ चावल राखता था . तकी अस चावल को देख ओर भी लोग चावल देथे ते . कभी कभी लोग भीक्षा पात्र खाली देख के कुछ नही देते . उन्हे हैसा लगता था की पता नही यह कैसा भीकारी होगा की इसे किसीने भी कुछ नही दीया . एक दीन वह सुबह सुबह अपनी झोली और भीक्षा पात्र और कुछ चावल लेके नीकला . तब उसे रास्ते मे राजा का रथ दीखा . उसने सोचा यह तो सौभग्य की घडी हे . आज का दीन बहुत ही अच्छा है . दरबार मे तो हम जैसे भिकारी को तो द्वारपाल मंत्री अंदर जाने नही देते राजा से मिलने नही देते . और राजा भी उनको आने देते जीससे कुछ काम हो . नहीतो हमे बाहर से ही भेज देते है . आज मोका अच्छा है . आज राजासे कुछ ना कुछ तो जरूर . मांगुगा राजा मनाभी नही करेगा . भिकारी ने सोचा आज यह मोका हात से नही जाने दुंगा . बहुत सारे मन मे वीचार लेके भीकारी आगे बड रहाथा . सोचता रहा आज क्या माग् क्या नही . देखते ही देखते राजा का रथ उसके सामने आके रुका . वह भीकारी कुछ मांगने से पहीले ही राजाने अपनी झोल्ली फैलादी . और बोला कुष डाल मेरे झोली मे . मेने आज शपथ ले रखी है की जोभी पहीला व्यक्ती दीखे उसे कुछ न कुछ मांगुगा . तो तु देर ना कर डाल मेरे झोली मे . जो हे तेरे पास, और जाने दे मुझे आगे और लंबा सफर तैय करना हे . तो तु डाल जल्दी . भीकरी तो सोच मे पड गया . य ह कौनसी मुसीबत आ पडी ..   आज तक मैने किसीको कुछ नही दीया और आज देने की बारी आ गयी .. मै हमेशा लेता ही रहा  . वह बहुत सोचने लगा . उसक हात झोली मे जाता और सोचता की कीतना दु राजा को . झोली मे चावल की मुठ्ठी भरता और फिर  छोड देता . ऐसा ही कुछ देर चलता रहा .  फीर उसने झोली मे से एक चावल का दाना निकाला ओर राजा के झोली मे डाल दीया . एक  चावल के दाने से उसका मन बहुत ही विचलीत हो उठा . और सोचने लागा आज एक दाना कम हुवा . चेहरे पे उदसी थी . घर पहुचा तो बीबी ने देखा की आज तुम बहत ही उदास हो . तुम्हारी झोली रोज से काफी भरी हे . फीर तुम उदास क्यू हो . क्या बात है . वह अपनी पत्नी से बोला  आज का दिन बहुत ही खराब गया . देने वालों ने ही  मांग लीया . बामुश्कील देना पडा . बहुत ही पश्चात्ताप हुवा . कभी किसी को दीया नाही .  आज दीया तो मुझे बहुत दुख हुवा . उसने अपने बीबी से कहां कुछ मत पुछ . उसने उपनी झोली को पलटा दी . ओर सब चावल बाहर निकाले . अभी तक तो उदास था . जब उसने देखा तो छाती पिट के रोने लगा . अब उसे ओर भी ज्याद पश्चाताप होने लगा . उसने देखा की उस चावल के दाने तो दाने थे  बस एक दाना सोने का था  . उसने सोचा की पूरी झोली राजा को दे देथी तो आज सारे चावल सोने के हो जाते . और रोज तो राजा नही मिल ता .


ये तो बस एक काहानी है . पर इस काहनी का बोध यही हो . जीवन मे हम जो भी देते हे वह सोना बन जात है . और जो अपने पास रहता है वह मिट्टी बन जाती हे . मरते वक्त हर आदमी अपनी झोली पलटा के देख ले तो . जीवन भर जो उसने दिये वह सब  सोने के दाने  बन जाता हो . और जो बच जाता हे वह मीटटी का ढेर . प्राथना का अर्थ पाना नही देना है . ऐसा जीवन जो देने का जीवन हो . दान . धर्म .प्रेम करुणा . जीतना अप दोगे उतना ही सब सोना बन जायेगा .

धन्यवाद



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