यह कहानी महाभारत के युद्ध के बाद की है, भगवान श्री कृष्ण जब युद्ध समाप्त होने के बाद जब वह वृंदावन के लिए निकले तब एक घने जंगल में , बदलो के गरजने जैसी आवाज आ रही थी, श्री कृष्ण ने अपने सारथी से कहा की यह आवाज एक महान तपस्वी के तप का ब्रभाव की है, रथ को उसी दिशा में ले चलो जहा से ये आवाज आ रही है, उनके दर्शन करके जायेंगे, वह दोनो तपस्वी के पास गए , श्री कृष्ण उनके दर्शन करने के लिए रथ से उतरे, तभी उतंग ऋषि ने अपने आंखे खोली और उर उनके मन को विचलित करने वाला प्रश्न किया की महाभारत का युद्ध नही हुवा न , कौरव और पांडव के बीच संबंध अब ठीक हुवे न, एक सांस में उतुंग ऋषि ने कही प्रश्न किए, उसपे भगवान श्री कृष्ण ने कहा की युद्ध हुआ और बड़ा ही भीषण युद्ध हुआ करोड़ों की संख्या में लोग मरे, केवल १० लोग बचे, इससे उतंग ऋषि क्रोधित हुए और श्री कृष्ण से कहा तुम्हारे होते हुवे इतना भीषण युद्ध कैसे हूवा, तुम चाहते तो इसे रोक सकते थे पर तुमने इसको होने दिया, इतनी बड़ी जीव हानि हुई, और तुम चुपचाप देखते रहे , इसीलिए मैं तुम्हे श्राप देता हु। इससे भगवान श्री कृष्ण बोले की रुको मेरी बात सुनो यह केवल युद्ध नही था यह युद्ध धर्म और अधर्म का युद्ध था , अगर ये युद्ध नही होता तो पृथी पर अराजकता फैल जाती, स्त्री यों पर अत्याचार होता, साधु संत को कोई पूजता नही , पशु पक्षी के ऊपर अन्याय होता उनकी हत्या हो जाती , चारो तरफ अन्याय अत्याचार होता अधर्म बढ़ता जाता, इसे रोकने के लिए यह युद्ध अनिवार्य था। मेरे इस अवतार को पहचानो, मुझे पहचानो मैं ही ब्रह्म हूं मैं ही महादेव मैं सारे भूतो में हू, मैं ही नारायण, मैं ही इंद्र मैं धर्म की स्थापना करने के लिए इस धरती पर अवतार लेता हु और अधर्म को मिटाकर धर्म की स्थापना करता हु। मैं काल से परे हूं, मुझे किसी भी प्रकार का श्राप नही लगता , मैं किसी के वश में नहीं आता , मुझसे ही यह संसार चलता है, मुझसे ही तुम्हारी तपस्या सफल होती है, मुझसे ही तुम्हारा श्राप सच सिद्ध होता है, अगर तुमने मुझे शर्म दिया तो जो शक्ति तुमने तप से अर्जित की है वह नष्ट हो जाएगी , तुम्हारा तपोबल शून्य हो जायेगा, यह सुनकर उतंग ऋषि ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और अपने विराट दर्शन के लिए प्रार्थना की, भगवान श्री कृष्ण ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें अपने विराट रूप के दर्शन दिए।
इस कहानी का बोध। कौरव की ताकत पांडव के मुताबिक बहुत ज्यादा थी, बहुत ही पराक्रमी योद्धा लाखो की सेना थी, और पांडव के पास केवल भगवान श्री कृष्ण थे। केवल भगवान का साथ होने से पांडवो की जीत हो गई, क्यों की पांडवोके कर्म अच्छे थे, और वे धर्म के पक्ष में थे, इसीलिए पांडव जीत गए। हमारा जीवन भी महाभारत के युद्ध जैसा है , अगर हमारा कर्म और हम धर्म को अच्छा और सच्चा रखे तो हमे बड़ी से बड़ी ताकत नही गिरा सकेगी, हम हर मुसीबत में डट के खड़े रह पाएंगे। और कठिनाई असानिसे हल हो जाएगी।
!!धन्यवाद!!