एक बंदर की कहानी, कही साल तप , साधना करने बाद एक साधु पे भगवान प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए, और उसे वरदान मांगने को कहा, साधु ने कहा मुझे मानुष से देवता बना दो, तब भगवान बोले की यह तो मैं नही कर सकता, क्यों की ये मृत्यू लोक है , यहां जन्मे हर जीव को मरना ही होता है, अगर तुम्हे भगवान बना दिया तो तुम अमर हो जावोगे, और ये नियति के विरुद्ध है, पर एक उपाय है, हिमालय पर्वत पर एक झील है, उसमे जो भी मनुष्य डूपकी लगता है वह भगवान बन जाता है, और जो भी प्राणी , पक्षी डूपकी लगता हैं वह मनुष्य बन जाता है, वाहा तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी, पर वहा का रास्ता बहुत कठिन है,उस साधु ने कहा मैं जरूर वहा जाऊंगा, उसी झिल के पास एक पेड़ था , उस पेड़ पर एक बंदर और बंदरिया रहती थी, कही सालो से वह वही रहते आए थे, पर उन्हे उस झील के बारे मालूम नही था, एक दिन वह साधु झील के पास पहुंच गया, बंदर
और बंदरिया ने देखा की यह साधु यहां क्या करने आया , इतने सालो में कभी भी कोई मानुष्य को नही देखा तो ये क्यू यहां आया, उन्होंने देखा की वह साधु झील को प्रणाम करके उसके अंदर चला गया, कुछ देर बाद वह साधु भगवान बनके बाहर आया, बंदर देख कर वे चकित रह गए , उन्हे इसके बारे में मालूम न था, यह देख उन दोनो ने उसी झिल में कूद गए, और कुछ देर बाद बहुत ही सुंदर मनुष्य बन कर बाहर आए , बंदरिया तो बहुत ही सुंदर और आकर्षक दिख रही थी, दोनो भी बहुत खुश हुवे, पर बंदर ने सोचा की क्यू न और एक बार इस झील में दुपकी मारू, यह सुनकर उस सुंदरी ने इनकार किया,कहा की कही तुम फिर से बंदर न बन जावो, पर वह नाही मना , आखिर बंदर जो था , मनुष्य होने के बावजूद भी उसके हरकते बंदर जैसे थे , उसने उसकी नही सुनी, और कूद गया, कुछ देर बाद वह बंदर बनकर बाहर आया, बंदरिया जो सुंदर स्त्री बनी थी वह बहुत नाराज हो गई , और वह बंदर कही बार डूपकि लगाने के बाद भी बंदर रहा ,कुछ महीने बाद बंदर को किसी मदारी ने पकड़ लिया, और उस सुंदरी पर एक राजा मोहित होके,उससे शादी कर ली, कुछ दिन बाद राजा के दरबार में बंदर का खेल दिखाने मदारी उसी बंदर को ले आया, रानी और बंदर ने एक दूसरे को देख के पहचान लिया , रानी ने कहा काश तुम मेरी बात मान लेते, अति लालच और ज्यादा की चाह ने तुम्हे फिरसे बंदर बना दिया, यह सुनकर बंदर रोने लगा और कहा अगले जनम में तुम्हारी राह देखूंगा,रानी ने भी कहा कि मैं भी तुम्हारी राह देखूंगी। और उस मदारी ने खेल समाप्त कर के बंदर को ले गया, दिनों के आंखो में आसु थे।
कहानी का बोध। की इंसान को कभी भी लालची नही होना चाहिए, जितना है उसी मे समाधान मानना चाहिए, अति करने के चाह में कही हम बंदर की तरह फिरसे बंदर न बन जाए।
!!धन्यवाद!!