एक नदी और कुवे की कहानी, एक दिन नदी घमेंड में आ कर कुवे से कहा , की तेरी क्या औकात है मेरे सामने तू देख अपने आप को कितना छोटा है , और मुझे देख मेरी लम्बाई देख , इस पर कुवे ने कहा , मैं तुज जैसा भटकता नही , मुजमे ठेहराव है , में शांत और स्थिर हू, तू उछलती रहती है, तु प्यासे के पास जाती है , पर मेरे पास प्यासा आता है, तू ऊपर से नीचे की और बहती है और समुंदर में मिलके खरी होजती है, अगर कही तेरा बहाना रूक गया तो तुजामे गंदगी समा जाती है , फिर तू पूरी तरह से गंदी हो जाती है ,फिर तुझे कोई नही पूछता , नही फिर तेरा पानी कोई पिता है , नही तू किसकी प्यास बुझा सकती है , में नीचे से ऊपर की तरफ बहता हु, और मीठा ही रहता हु , लोग मुझसे हजारों वर्षो से मेरे मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते है , यह सुनकर नदी को अपने किए पे पछतावा हुआ, उसने कुवे से क्षमा मांगी, और आगे निकल गई।
यह बहुत ही छोटी कहानी है, पर इसका अर्थ बहुत ही गहरा है।
इस कहानी का बोध :- हम जब नीचे से ऊपर की और बढ़ते है तब हमे बहुत कठनाई का समाना करना पड़ता है, पर जब हम सफल होते है तब हम आरो के बारे में भी सोचते है, नीचे से ऊपर को आने के वजह से हम , हर एक इंसान की जरूरत , और उस इन्सान की मजबूरी को जानते है , और फिर हम कुवे के जैसा मीठा होके हर एक जरूरतमंद को प्यास बुझाते है।
!!धन्यवाद!!