एक राजा था, बड़ा ही ऐयाश था, उसे अपने राज्य की कोई चिंता नहीं थी नही परवा थी, वो बस अपने आप में मग्न रहता था, उसने अपना महल सबसे सुंदर बनाया था,स्वर्ग से भी सुंदर , बहुत ही कीमती हीरे ,सोने ,चांदी से सजाया था , सब कुछ था उसके पास किसी भी चीज की कमी नही थी , महंगी शराब का सेवन करता था, दूसरे देशों से महंगी से महंगी शराब खरीदता था , और दिन रात पिता था , रात भर शराब पीता था , नर्तकी का नर्तक देखता था , सबसे सुंदर उसने सेविका रखी थी , अपसरा से भी सुंदर , दिन रात उसी मे डूबा रहता था , रात देर तक जागना जिंदगी का आनंद लेना और दुपहर देर से उठाना बस ये ही उसका काम था , उसके महल में सेवक कम और सेविका ज्यादा , अपने आजू बाजू में नग्न स्त्री को रखता था ,उसने ऐयाशी की पुरी हद पार कर दी थी।फिर एक दिन राज्य भर में चर्चा हुई की महाराज श्रोण अब दीक्षा ले ने जा रहा है वो अब बौद्ध भिक्षु बनाने जा रहा है , पूरे राज्य में और भिक्षु संघ में भी इसकी चर्चा हो रही थी,की इतना ऐयाश राजा भिक्षु बन रहा है , कुछ दिन बाद उसने दीक्षा लेली . और वो बौदध भिक्षू बन गया , सबके मन में यह अतुरता थी जानने की, की ऐसा सम्राट , जो ऐयाश था , इतना सारा सुख होते हुवे भी ये भिक्षु कैसे बन गया, फिर सबने मिलकर तथागत गौतम बुद्ध से उनके संबंधित प्रश्न पूछे, भगवान बुद्ध ने कहा की येतो होना ही था , उसने बहुत ही ज्यादा सुख भोगा था , उसने उसमे अति करदी थी, अब उसके पास करने को कुछ बाकी ना रहा, उसके अहंकार , सुख के सामने एक दीवार सी आ गई थी , उसके पर कुछ नही था , जब आगे पाने को ही कुछ नही था , तब ऐसा इंसान परम संन्यासी बन जाता है , वह जान लेता है , की अब आगे कुछ भी नही है, और कुछ नया करने को भी नही है, रोज रोज वही सब है, उससे उसका मन ऊबने लगा , और फिर ऐसे इंसान परम संन्यासी हो जाते है, इसीलिए ज्यादा अति करना जीवन में ठीक नही, हमारा जीवन एक वीणा की तरह है , वीणा की तार ढीली हो तो उसमे से ठीक से संगीत नही आयेगा , उसका आवाज नही उठेगा, और अगर ज्यादा कसली तो वे तार छेड़ते ही टूट जायेगी , जीवन भी ऐसा ही है, माध्यम जीवन सबसे सुखमय जीवन है , जो हर सुबह नही चाह नई सोच और नई प्रगति को लेके आती हैं। इसीलिए ये भिक्षु वो , मनुष्य को माध्यम तरीके का जीवन जीना चाहिए । ऐसा कहके तथागत गौतम बुद्ध ने अपने भिक्षुवो को समझाया ,
इस कहानी का बोध। हमारा जीवन एक वीणा की तरह है , वीणा की तार ढीली हो तो उसमे से ठीक से संगीत नही आयेगा , उसका आवाज नही उठेगा, और अगर ज्यादा कसली तो वे तार छेड़ते ही टूट जायेगी , जीवन भी ऐसा ही है, माध्यम जीवन सबसे सुखमय जीवन है , जो हर सुबह नही चाह नई सोच और नई प्रगति को लेके आती हैं। इसीलिए ये भिक्षु वो , मनुष्य को माध्यम तरीके का जीवन जीना चाहिए ।
!!धन्यवाद!!