एक देवदुत्त और यमराज की कहानी, एक दिन यमदाज के अदेशा नुसार देवदूत एक स्त्री के प्राण हरने पहुंच गए , प्राण हरने के समय देवदूत ने देखा की, उस महिला की तीन छोटी छोटी बेतिया है , उसमे से एक मां के मृत शरीर के स्तन से दूध पी रही है , दूसरी रोते रोते थक गई और वैसे ही सो गई , उसके आंख के आसू भी अभी सूखे नही, और तीसरी उस मृत मां के बाजू में बैठ कर बहुत जोर जोर से रो रही हैं, यह देख कर देवदूत की आखें भर आई , उसे बहुत ही दया आई , उसने सोचा की मैं अगर इसके प्राण हरलू तो मुझे पाप लगेगा , उसे उन छोटी छोटी बच्चियों पे तरस आया, उसने मन ही मन में सोचा की मैं यमराज से उस मां के लंबे अयु के लिए प्रार्थना करूंगा , और वे देवदूत यम लोक पहुंचे, तब यमराज ने कहा ही कहा है उस स्त्री के प्राण , देवदूत ने यमराज से कहा , उस महिला के तीन छोटी छोटी बेतिया है , बहुत रो रही है, उन्हें मां की जरूरत है , यमराज मैं आपसे विनती करता हु की , उन्हे थोड़ी आयु दे , वे लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएगी तभी मैं उसके प्राण हर लूंगा , इस पर यमराज बहुत ही क्रोधित हो उठे , उसने देवदूत से कहा, तुम कोन होते हो नियति को बदलने वाले, तुमने मेरा आदेश नही माना , तुमने नियति को बदलना चाहा, ये भी पाप है , इसीलिए मैं तुम्हे श्राप देता हु , जबतक तुम अपने मूर्खता पर तीन बार हसोंगे तब तक तुम्हें पृथ्वी लोक पे रहना होगा , देवदूत ने यमराज का श्राप स्वीकार किया और पृथ्वी लोक पर साधारण मनुष्य के भाती पहुंच गए, एक दिन एक आदमी गांव से शहर जा रहा था , वह एक बहुत गरीब चमार था, थोड़े बहुत पैसे इकट्ठा करके , बीवी और बच्चो के लिए शहर से कपड़े और बच्चो के लिए कुछ खिलोने लाने जा रहा था , तभी उसने देखा की एक आदमी नग्न अवस्था इतनी तेज ठंड में ठिठुर कर सो रहा है , उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं है , उस चमार ने अपने शरीर पे से एक कपड़ा उतारा और उस आदमी को दिया , फिर उसे पता चला की उसने कही दिनों से खाना भी नही खाया , उस चमार को उस आदमी की बहुत दया आई,और उसने उसे खाना खिलाया और नए कपड़े भी दिए, उस चमार के सारे पैसे खर्च हो गए , बीवी और बच्चो के लिए कुछ नहीं ले पाया , वह बहुत ही दुखी था , पर उसे इस बात की भी खुशी थी की मैने किसी गरीब की मदट की , घर जाकर बीवी और बच्चो मुझापे गुस्सा करेंगे , पर उसने उसकी फिकीर नही की, उसने उस आदमी से पूछा की तुम रहते कहा हो , उस आदमी ने कहा , कही नही , मेरा कोई घर नही , ना की कोई सगा संबंधी, रिश्तेदार कोई नही है मेरा इस दुनिया में, उस चमार को उसकी दया आई, और उसने कहा की तुम मेरे घर चलो, पैसे तो सारे खर्च हो गए और तुम्हे भी साथ ले जा रहा हु , आज घर में मेरी खैर नहीं, बीवी मुजपर गुस्सा करेगी , बहुत क्रोधित हो उठेगी चिल्लाएगी पर तुम शांत रहना , कुछ दिन के बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा , मैं तुम्हे चप्पल , जूते सिलना सिखावूंगा, और उसे घर ले गया , अपने बीवी को सारी बात बताई , बीवी बहुत क्रोधित हो गई , चिल्लाने लगी , भला बुरा कहने लगी , बच्चे रो रहे थे , बहुत आस लगाए जो बैठे थे, उतने में वह आदमी हसने लगा , और उसने मन ही मन सोचा , की जो तुम्हारे घर आया है वह एक देवदूत है , उसके आने से ही सब पीड़ा दुख दरिद्रता, खत्म हो जाते है , सुख शांति संपति इसकी बरसात होती है , पर वह लोग समझ नही पाए , उनकी दृष्टि वह सब नही देख पाए इसलिए वह हस पड़ा , चमार ने पूछा तुम क्यों हस रहे थे , उसने कहा मैं तो अपने मूर्खता पे हसा हु , इस चमार ने पूछा पर क्यू, देवदूत ने कहा समय आने पर तुम्हे सब बता दूंगा , कुछ ही दिनों में उस देवदूत ने चमार के सारे काम सिख लिए। , वह अब बहुत ही सुंदर और बेहतर चप्पल जूते सिलने लगा , देखते ही देखते पूरे शहर में उसके जूते और चप्पल बिकने लगे , उसने कभी सोचा भी नही होगा उतना धन उस चमार ने कमाया , बहुत दूर दूर से लोग चप्पल और जूते सिलवाने आते थे , राजा के दरबारी, मंत्री , सभी वहा से ही , चप्पल बनवाते , राजा के जूते भी अब वही देवदूत बनवाता था , एक दिन एक मंत्री बहुत की कीमती चमड़ा लेके चमार के पास आया , और राजा के लिए नए जूते इस चमड़े से सिलवाने के लिए कहा, उस मंत्री ने कहा की तुम्हे जितने दिन चाहिए उतने लो, पर जूते अच्छे बनवाना , उस देवदूत ने कहा ठीक है , दो ही दिनों में उसने उस चमड़े से एक चप्पल सिलवाई , यह देख कर चमार क्रोधित हो उठा , अरे ये तुमने क्या किया , जूते सिलवाने के बजाय तुमने चप्पल सिलवाई , यह तो मरने के बाद सिलवाती है , अब राजा हमे दंड देगा , सजा देगा , हमे गाव से बाहर निकले गा, ये तुमने क्या किया , यह सुनकर वह देवदूत दूसरी बार हसा, चमार ने पूछा की तुम क्यों हस रहे हो ,क्या तुम्हे जरा भी डर नहीं है , देवदूत ने कहा , समय आने पर मैं तुम्हे सब कुछ बता दूंगा, उतने ने एक मंत्री ने , उस चमार को खबर दी, की तुम जूते मत सिलवाना , राजा मार गया , अब तुम चप्पल सिलवाना , वह चमार आचार्य हो गया , क्यू की देवतुत जो था वह, वह मानुष के दृष्टि से आगे देख सकता था, देवदूत को और एक बार अपने मूर्खता पे हसना था, और वह हस पड़ा, फिर एक दिन एक महारानी दूर देश से आई अपने बेटियो के लिए चप्पल बनवाने , उस महारानी और उसके साथ उसकी तीन लड़कियां भी थी , इस महारानी का थाट देखने जैसा था, सोने के रथ में आई थी बहुत सारे सिपाही अंगरक्षक, के साथ आई थी , बहुत सारे आभूषण थे , वह देख चमार देखते ही रह गया , उस महारानी ने कहा की मुझे और मेरी तीन बेटियो के लिए जूते सिलवाने है , उस देवदूत ने कहा अपने बेटियो को बुलाओ मैं उनके पेरो का का माप लेता हु, जैसे ही उसने उस तीन लड़कियों को देखा , देवदूत को वह सब याद आया , उसने महारानी से कहा , अगर मैं गलत नही तो ये तीन लड़कियां तुम्हारी नही है , महारानी ने कहा हा, यह तो मुझे एक मृत मां के शरीर के पास मिली , बहुत रो रही थी, कोई जान पैचनाने वाला भी नही था , और वे बहुत ही सुंदर थी , मुझे कोई भी अपनी संतान नहीं थी , तो मैने इन्हे गोद ले लिया यह सुनकर वह देवदूत तीसरी याने आखरी बार अपने मूर्खता पर हस पड़ा, चमार ने कहा तीन बार तुम हस दिए , अब तो मुझे वह राज बताओ, देवदूत ने अपने असली रूप में आके उस चमार के परिवार को दर्शन दिए , और अपनी हकीकत बतादी, सभी धन्य हुवे , देवदूत सबको अपना आशीर्वाद देके वापस यम लोक में चले गए, यमराज से क्षमा मांगी और अपने काम पी जुड़ गए
इस कहानी का बोध यह है , कभी कभी हैं कुछ चीजे नियति के हात सोप देना चाहिए , परमात्मा ने हमारे लिए कुछ न कुछ जरूर सोचा होगा , और हमारे बड़ो की आज्ञा का अपमान नही करना चाहिए, मां , बाप , हमारे गुरु होते है , उनकी आज्ञा का पालन हमे जरूर करना चाहिए , क्योंकि उनकी दृष्टि हमारे दृष्टि से कही अधिक लंबे तक देख सकती है , फिर हमें जिंदगी में कभी भी अपने मूर्खता पर हसन नही पड़ेगा।
।।धन्यवाद।।