एक राजा और उसके तीन बेटों की कहानी, राजा अब बूढ़ा हो चुका था , राजा को अपनी राज गद्दी और राज्य का सारा निर्णय अपने किसी एक बेटे को देना था , पर तीनो भी समान तौर पर काबिल थे , निर्णय लेना राजा को कठिन हो रहा था , तभी राजा ने अपने बूढे नौकर को कहा , जो किसान था , उससे पूछा की कुछ तरकीब निकालो, उस बूढ़े ने राजा को एक ही तरकीब बताई, एक दिन सुबह राजा ने अपने तीनो बेटों को बुलाया , और तीनो को एक एक गेहू का बोरा भेट दी , और उनसे कहा की इसे संभाल के रखो, मैं तीर्थ यात्रा को जा रहा हूं,जब मैं तीर्थ यात्रा से लौटू तो मुझे ये वापस लौटा देना , तुम उत्तरदाई होगे इस अनाज के ,जैसे मैने दिया है वैसे ही लौटना है तुम्हे , तो इसे बहुत संभाल के रखो ,तीर्थ यात्रा करके आने का समय एक साल दो साल या तीन साल भी लग सकता है, तीनो ने अपने अपने गेहूं के बोरी लेके सोचने लगे , बड़े बेटे ने सोचा की मैं इसे तिजोरी मैं रख दूंगा , जब पिताजी वापस आयेंगे तो इन्हे मैं पिताजी को लौटा दूंगा, उसने बडी सावधानी से और सुरक्षा के साथ तिजोरी में रख दिया, छोटे बेटे ने उसे किसी जमीन पे फिकवा दिया , जिस जमीन पे उसने फिकवा दिया वह जमीन जंगल जैसी थी ,उसपे बहुत घास थी, बहुत सारे कंकर पत्थर थे, उसने न उस घास को काटा नही उस जमीन के कंकर पत्थर साफ किए , नही उस जमीन की जाज की की यह जमीन खेती के लिए योग्य है या नही , नही उसे खेती के बारेमे कोई जानकारी थी, तीसरे बेटे ने सोचा , की अगर मैं , इसे बड़े बाई जैसे तिजोरी में रखी तो वाह कुछ महीने बाद खराब हो जायेंगे, राख हो जायेंगे, मैं इससे खेती करूंगा , जो बाद में एक बोरी के कई बोरी बनेंगे , उसने एक जमीन ली , उसमेसे सभी घास काट दी, कंकर पत्थर साफ किए, जमीन की जाज की , और उसे उपजाव बनाया, फिर उसमे गेहूं के बीज बोए, तीन साल के बाद उनके पिताजी वापस आए , और अपने तीनो बेटो से मिले, और अपने गेहूं की बोरी वापस मांग ली, बड़े बेटे ने बड़ी सुरक्षा के साथ अपनी बोरी तिजोरी से बाहर निकली और , अपने पिताजी को सोप दी, पिताजी ने बोरी को खोल के देखा तो सब दाने राख हो चुके थे , सब सड़ गाएं थे , राजा ने उसे कहा , मैं ने तो तुम्हे जीवित गेहु के दाने दिए थे, जो विकसित हो सकते थे, जिसे तुम तीन सालो में कई हजार दाने तयार करते, इसकी कीमत तुम नही समझ पाए , और तुमने जीवित दाने मार दिए, तो तुम राज कैसे संभालो गे , इसीलिए मैं तुम्हे ये राज्य नही दे सकता , फिर राजा ने अपने छोटे बेटे से कहा की तुम्हारे दाने कहा है , उसने कहा में तो उसे , किसी जमीन पे फेक आया , तो राजा ने उससे पूछा की क्या गेहूं की फसल आई , उसने कहा , मैं ने देखा ही नहीं इन तीन सालो ने , राजा और उसके बेटे ने जाके देखा , की वहा पर कुछ भी नही था, केवल घास ही घास थी , राजा ने कहा तुमने भी , जीवित दानो को मार दिया , तब छोटे बेटे ने कहा , ऐसे तो कही पेड़ बिना लगाए उगते है , फिर उसे बो देने की क्या जरूरत है , राजा ने कहा की तुम भी ना समझ हो, तुम पर भी में भरोसा नही कर सकता , तुम्हे भी मैं ये राज्य नही दे सकता, तब राजा ने , अपने मंजले बेटे से कहा , की तुमने क्या किए गेहूं के दानों का , उसने राजा को , खेती में लेके गया , तब राजा को अपने मंजले बेटे ने चारो तरफ फैला हुवा गेहूं का खेत दिखाया , और कहा ये सब आपके उस बोरी से मैं ने यह खेत इन तीन सालो मे बनाया , राज देखके बहुत खुश हुवा, चारो तरफ हरियाली ही हरियाली , सुगंधित हवा, सूरज की किरणे पेड़ो पे चमक रही थी , राजा प्रसन्न होकर उसने अपने मंजले बेटे को अपनी राज गद्दी सोफ दी, इस तरह से बहुत आसानी से और समझदारी से राजा ने , राज्य को नया और सबसे अनोखा युवराज दिया ,
इस कहानी का बोध यह है ,, परमात्मा भी हमे छोटे छोटे बीज रूप मै कई अवसर देता है , उस अवसर में बड़ी संभावना होती है नया और बड़ा राज्य करने की ,पर हम भी राजा के तीन बेटो के जैसा व्यवहार करते है, कई लोग मिला हुवा धन तिजोरी में रखते , जो मरने के बाद राख हो जाता है , ना उससे वो अधिक धन कमाता है , नही किसी को मदत करता है , कुछ लोग मिला हुवा धन को , ऐसे ही किसी जगह पर लगा देते है , बाद में न उसके ऊपर ध्यान देते है नही उसकी चिंता करते है , पर बदमे उनके हात मे खालि पछतावा हि रहता है. अपने पैसे के व्यवहार के राजा के मंजले बेटे जैसा करना चाहिए, जो कही गुना बड़े , जिससे खुद का भरण पोषण हो जाए और दुसरो का भी ,
। । ध न्य वा द। ।
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