एक धनुर्धर की कहानी, एक सम्राट ने अपने धनुर्विध को कहा की तुजसे बड़ा धनुर्विध इस राज्य में और इस संसार में मुझे नजर नहीं आता , तो तू घोषणा कर दे की मुझसे बड़ा धनुर्धारी है तो वो मुझसे सामना करे , मुझे हराके दिखाए, तब मैं इस देश के सबसे महान धनुर्विध तुम्हे घोषित करूंगा , उसने राजा से कहा उसकी कोई जरूरत नहीं कोई भी मुझसे बड़ा इस संसार में नही है , तभी एक बूढ़ा द्वारपाल हसा, उसने घोषणा करने के बाद उस द्वारपाल से कहा की तुम क्यू हस रहे थे , क्या बात है , क्या तुमको मुजपर शक है , तो उस द्वारपाल ने कहा , तुम्हे धनुर्विद्या का ज्ञान कहा है ,तुमसे बड़ा धनुर्विध इस संसार में है तुम तो कुछ भी नहीं और तुम्हे आता ही क्या , ऐसा सुन के वह बहुत ही शांत हवा और कहा की मुझे उस धनुर्विध का पता बताओ मैं उसे मिलता हु, उस द्वारपाल ने कहा की राज्य के पूर्व दिशा के पहाड़ी के नीचे वह रहता हैं, वह उसे ढूंढते हुवे चला गया, पहाड़ी की नीचे उसे एक बूढ़ा लकड़हारा मिला , लकड़ियाय बेच के वो अपना गुजारा करता , उस धनुर्विध ने कहा कि मैं एक महान धनुर्विध के तलाश में आया हूं, इस पहाड़ी की नीचे आप के सिवा कोई भी नही है , तो क्या आप मुझे उसका पता बतावोगे , उस बुडे ने काह की मैं ही हु, तीन दिन उस बूढ़े धनुर्विध के साथ रहने के बाद उसे पता चला कि मुझे तो कुछ आता हि नही है , तीन साल धनुर्विद्या सीखने के बाद , वह वापस लौट रहा था , तभी उसे ख्याल आया की , मैं तो अभी पूरी तरह से सिख गया अब मैं संसार का सबसे बड़ा धनुर्धारी बन गया , पर मन ही मन सोचने लगा की भले मैं कितनाही बड़ा क्यू ना हुवा पर रहूंगा तो दूसरे नंबर पर , क्यू ना मैं अपने गुरु को मार दु, वह एक पेड़ के पीछे छुप गया , उसने देखा की उसका गुरु लकड़ियां लेके आ रहा है , उसने एक तीर निकाला और गुरु को निशाना बनाकर छोड़ दिया ,गुरु ने तीर को अपने तरफ आते हुवे देखा , और अपनी लकड़ियों में से एक छोटी लकड़ी उठाई और तीर के तरफ फेंक दी, तीर घुमा और शिष्य के सीने में जाके घुस गया, गुरु शिष्य के पास जाकर तीर निकाला और उसे कहा की मैं बस तुम्हे इस धनुर्विद्या को नही सिकाया, लकड़ी का कोई भी टुकड़ा उठा के फेंका तो तीर बन जाए और किसे को लगे तो खून की एक बूंद गिरे बिगर मार जाए , पर इससे बड़ी धनुर्विद्या मैं भी अभी सिख नही पाया , खाली आंखो से किसी को भी मार दे , बिना तीर और बिना लकड़ी के , मैं मेरे गुरु को आती है , मैं जनता हू, तुम जावो वहा ,वे तुम्हे मुझसे अच्छी धनुर्विद्या सीखा देगा , इस पहाड़ी के पीछे रहते है मेरे गुरु तुम जाके उनसे मिलो, वह धनुर्विध अपने गुरु के गुरु को ढूंढने चला गया , पहाड़ी के पीछे और एक पहाड़ के ऊपर उसका घर था वाह बहुत ही बुढा था कमर झुकी हुवि थी, ठीक से चल नही पा रहा था , उस शिष्य ने कहा की आप ही हो इस संसार के सबसे महान धनुर्धारी , उस बूढ़े ने कहा की , थोड़ी बहुत आती है मुझे धनुर्विद्या , क्या तुम्हे सीखना है , उस शिष्य ने कहा नही में तो सीख के आया हूं , उस बूढ़े ने कहा सीखे हो तो इस धनुष्य को क्यू अपने कंधे से लटकाया है , उसने कहा की मैं एक तीर से १०० पक्षी योंको मार गिरा सकता हु , उस बूढ़े गुरु ने कहा की ये तो मामूली सी बात है , यह तो कोई भी कर सकता है, जमीन पे खड़े होके , तब गुरु ने कहा की मै तुम्हे जहां से बतावू वहासे क्या तुम कक्ष लगा सकते हो उसने कहा हा, तब वह बूढ़ा गुरु, एक पहाड़ी के चोटी पे जाके एक पैर के पंजे पे खड़ा हवा और खड़ा भी ऐसे जगह हुवा की संसो का नियंत्रण खो गया तो हमेशा के लिए इस संसार से गायब , पीछे बड़ी खाई और आगे ढलान वाली चट्टान , वह शिष्य तो डर गया और उसने कहा की मेरे तो हात पाव कापने लगे , तब उस गुरु ने कहा की हात पाव कपेंगे तो तुम निशाना कैसे साधोगे , तुम्हारे हात पाव कप रहे है तो तुम आत्मा पे नियंत्रण कैसे पावोंगे , जब तुम आत्मा पे नियंत्रण रख पावोंगे तभी तुम सबसे बड़े धनुर्धारी कहलावोगे फिर तुम्हे न धनुष्य की जरूरत नहि पड़ेगी, नही लकड़ी के टुकड़े की , बस आंखो से ही तुम किसी को भी मार सकते हो , उस गुरु ने उस शिष्य को उदाहरण देते हुवे कहा की ऊपर देखो ३० पक्षी का थावा जा रहा है मैं अपनी आंखों से उन सारे पक्षियोंक मार गिरा ता हूं, उस गुरु ने ऊपर देखा अपनी आंख मिचकाई कुछ ही पल में ३० के ३० पक्षी मार के नीचे गिरे , वह शिष्य देखते ही रह गया और वह अपने अंहकार और गर्व पर हसने लगा इक और उसे समझ आई की पूर्ण ज्ञानी कभी भी अपने महंता का बखान नही करता , वह तो पेड़ की तरह चट्टन्नो में भी खड़ा रहता है और अपनी शीतल छाया से सबको सुख और आनंद देता हैं.
सिख , कभी भी अपने आप पर गर्व मत करो , ज्ञानी बनो पर अहंकारी मत बनो , आप कितने भी बड़े क्यू न हो , आप से बड़ा कही ना कही इस संसार में है, और हमेशा रहेगा.
!!ध न्य वा द!!