गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

NIRDHAN UPASAK AUR BHAGVAN BHUDDH KI KAHANI/ निर्धन उपासक और भगवान बुद्ध की कहानी.

 निर्धन उपासक और भगवान बुद्ध की कहानी, अल्वी नगर के एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था , बहुत ही गरीब था , खेती करके अपने पेट भरते थे, एक दिन उन्हें यह मालूम हुवा की तथागत भगवान बुद्ध हमारे गांव में कल आ रहे है, वह बहुत ही खुश हुव उसने सोचा की कल में भगवान के दर्शन करके उनसे उपदेश लूंगा, कुछ सिकुगा , फिर सुबह भगवान बुद्ध अपने ५०० भिक्षु के साथ अल्वी नगर आए , अल्वी नगर वासियोने भगवान से भोजन करने के लिए आग्रह किया, भगवान वही रूक गए, वह निर्धन उपासक भी भगवान के दर्शन के लिए आतुर था , पर जब वह सुबह उठा तो उसने देखा की उसका एक बैल कही चला गया, वह उसको ढूंढने के लिए चला गया , भूखा प्यासा दिन भर उसे ढूंढता रहा, दुपहर होते होते उसने उस बैल को ढूंढ निकाला , और वैसे ही भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए चला गया, भगवान बुद्ध ने उसे देखा और अपने पास बिठाया , और उसे भर पेट भोजन के लिए आग्रह किया, उसने मना करने के बाद भी भगवान ने उसे खाना खिलाया , और कुछ धर्म के उपदेश भगवान बुद्ध ने उस गरीब को दिए, वह सुनकर वह बहुत हि धन्य हुवा, पर यह बात भिक्षू संघ में बिजली की तरह फैल गई, सब को आशर्य हुवा, क्योंकि ऐसा कभी भी भगवान ने नही किया था , उन भिक्षु ने भगवान से जिज्ञासा कि,  आप ने ऐसा क्यों किया, पहले तो आप ने ऐसा कभी भी नहीं किया , तब भगवान बुद्ध ने इन भिक्षु से कहा कि भूखे पेट किसी को धर्म नही सिखाया जा सकता है , नही कोई उपदेश , क्यों कि इस संसार में सबसे बड़ा रोग भूख हैं भूख से बडकर रोग इस संसार में नही है , क्यों कि भूख लगने के बाद शरीर की चेतना शरीर की भूख मिटाने के लिए जुड़ जाती हैं, फिर उसे कुछ दूसरा नही सूझता, उदाहरण, जब हमारे पैर में कांटा लग जाता है तो हमारी चेतना वही पैर के पास घूमती रहती है , जैसे सिर में दर्द हो तभी भी हमारी चेतना वही सिर के पास घूमती रहती हैं, उस समय हमारा ध्यान उसी चीज पे रहता हैं , इसीलिए भूख सबसे बड़ा रोग है और संस्कार सबसे बड़ा दुख है और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है, 

बोध : इस कहानी से हमे यह बात समझ में आई की भूखे पेट हम कुछ भी सिख नही पाते। नही धर्म नही संस्कार , क्योंकि शरीर का ध्यान पूरा भूख मिटाने में लग जाता हैं, अगर हम भूखे पेट प्राथना भी करे तो पूरी प्रार्थना पे भूख की भूख छा जायेगी.

। । ध न्य वा द। । 




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