शनिवार, 29 अप्रैल 2023

EK DHANURDHAR KI KAHANI/एक धनुर्धर की कहानी

 एक धनुर्धर की कहानी, एक सम्राट ने अपने धनुर्विध को कहा की तुजसे बड़ा धनुर्विध इस राज्य में और इस संसार में मुझे नजर नहीं आता , तो तू घोषणा कर दे की मुझसे बड़ा धनुर्धारी है तो वो मुझसे सामना करे , मुझे हराके दिखाए, तब मैं इस देश के सबसे महान धनुर्विध तुम्हे घोषित करूंगा , उसने राजा से कहा उसकी कोई जरूरत नहीं कोई भी मुझसे बड़ा इस संसार में नही है , तभी  एक बूढ़ा द्वारपाल हसा, उसने घोषणा करने के बाद उस द्वारपाल से कहा की तुम क्यू हस रहे थे , क्या बात है , क्या तुमको मुजपर शक है , तो उस द्वारपाल ने कहा , तुम्हे धनुर्विद्या का ज्ञान कहा है  ,तुमसे बड़ा धनुर्विध इस संसार में है तुम तो कुछ भी नहीं और तुम्हे आता ही क्या , ऐसा सुन के वह बहुत ही शांत हवा और कहा की मुझे उस धनुर्विध का पता बताओ मैं उसे मिलता हु, उस द्वारपाल ने कहा की राज्य के पूर्व दिशा के पहाड़ी के नीचे वह रहता हैं, वह उसे ढूंढते हुवे चला गया, पहाड़ी की नीचे उसे एक बूढ़ा लकड़हारा मिला , लकड़ियाय बेच के वो अपना गुजारा करता , उस धनुर्विध ने कहा कि मैं एक महान धनुर्विध के तलाश में आया हूं, इस पहाड़ी की नीचे आप के सिवा कोई भी नही है , तो क्या आप मुझे उसका पता बतावोगे , उस बुडे ने काह की मैं ही हु, तीन दिन उस बूढ़े धनुर्विध के साथ रहने के बाद उसे पता चला कि मुझे तो कुछ आता हि नही है , तीन साल धनुर्विद्या सीखने के बाद , वह वापस लौट रहा था , तभी उसे ख्याल आया की , मैं तो अभी पूरी तरह से सिख गया अब मैं संसार का सबसे बड़ा धनुर्धारी बन गया , पर मन ही मन सोचने लगा की भले मैं कितनाही बड़ा क्यू ना हुवा पर रहूंगा तो दूसरे नंबर पर , क्यू ना मैं अपने गुरु को मार दु, वह एक पेड़ के पीछे छुप गया , उसने देखा की उसका गुरु लकड़ियां लेके आ रहा है , उसने एक तीर निकाला और गुरु को निशाना बनाकर छोड़ दिया ,गुरु ने तीर को अपने तरफ आते हुवे देखा , और अपनी लकड़ियों में से एक छोटी लकड़ी उठाई और तीर के तरफ फेंक दी, तीर घुमा और शिष्य के सीने में जाके घुस गया, गुरु शिष्य के पास जाकर तीर निकाला और उसे कहा की मैं बस तुम्हे इस धनुर्विद्या को नही सिकाया, लकड़ी का कोई भी टुकड़ा उठा के फेंका तो तीर बन जाए और किसे को लगे तो खून की एक बूंद गिरे बिगर मार जाए , पर इससे बड़ी धनुर्विद्या मैं भी अभी सिख नही पाया , खाली आंखो से किसी को भी मार दे , बिना तीर और बिना लकड़ी के , मैं मेरे गुरु को आती है , मैं जनता हू, तुम जावो वहा ,वे तुम्हे मुझसे अच्छी धनुर्विद्या सीखा देगा , इस पहाड़ी के पीछे रहते है मेरे गुरु तुम जाके उनसे मिलो, वह धनुर्विध अपने गुरु के गुरु को ढूंढने चला गया , पहाड़ी के पीछे और एक पहाड़ के ऊपर उसका घर था वाह बहुत ही बुढा था कमर झुकी हुवि थी, ठीक से चल नही पा रहा था , उस शिष्य ने कहा की आप ही हो इस संसार के सबसे महान धनुर्धारी , उस बूढ़े ने कहा की , थोड़ी बहुत आती है मुझे धनुर्विद्या , क्या तुम्हे सीखना है , उस शिष्य ने कहा नही में तो सीख के आया हूं , उस बूढ़े ने कहा सीखे हो तो इस धनुष्य को क्यू अपने कंधे से लटकाया है , उसने कहा की मैं एक तीर से १०० पक्षी योंको मार गिरा सकता हु , उस बूढ़े गुरु ने कहा की ये तो मामूली सी बात है , यह तो कोई भी कर सकता है, जमीन पे खड़े होके , तब गुरु ने कहा की मै तुम्हे जहां से बतावू वहासे क्या तुम कक्ष लगा सकते हो उसने कहा हा, तब वह बूढ़ा गुरु, एक पहाड़ी के चोटी पे जाके एक पैर के पंजे पे खड़ा हवा और खड़ा भी ऐसे जगह हुवा की संसो का नियंत्रण खो गया तो हमेशा के लिए इस संसार से गायब , पीछे बड़ी खाई और आगे ढलान वाली चट्टान , वह शिष्य तो डर गया और उसने कहा की मेरे तो हात पाव कापने लगे , तब उस गुरु ने कहा की हात पाव कपेंगे तो तुम निशाना कैसे साधोगे , तुम्हारे हात पाव कप रहे है तो तुम आत्मा पे नियंत्रण कैसे पावोंगे  , जब तुम आत्मा पे नियंत्रण रख पावोंगे तभी तुम सबसे बड़े धनुर्धारी कहलावोगे फिर तुम्हे न धनुष्य की जरूरत नहि पड़ेगी, नही लकड़ी के टुकड़े की , बस आंखो से ही तुम किसी को भी मार सकते हो , उस गुरु ने उस शिष्य को उदाहरण देते हुवे कहा की ऊपर देखो ३० पक्षी का थावा जा रहा है मैं अपनी आंखों से उन सारे पक्षियोंक मार गिरा ता हूं, उस गुरु ने ऊपर देखा अपनी आंख मिचकाई कुछ ही पल में ३० के ३० पक्षी मार के नीचे गिरे , वह शिष्य देखते ही रह गया  और वह अपने अंहकार और गर्व पर हसने लगा इक  और उसे समझ आई की पूर्ण ज्ञानी कभी भी अपने महंता का बखान नही करता , वह तो पेड़ की तरह चट्टन्नो में भी खड़ा रहता है और अपनी शीतल छाया से सबको सुख और  आनंद देता हैं.  

सिख , कभी भी अपने आप पर गर्व मत करो , ज्ञानी बनो पर अहंकारी मत बनो , आप कितने भी बड़े क्यू न हो , आप से बड़ा कही ना कही इस संसार में है, और हमेशा रहेगा.

!!ध न्य वा द!!



गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

NIRDHAN UPASAK AUR BHAGVAN BHUDDH KI KAHANI/ निर्धन उपासक और भगवान बुद्ध की कहानी.

 निर्धन उपासक और भगवान बुद्ध की कहानी, अल्वी नगर के एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था , बहुत ही गरीब था , खेती करके अपने पेट भरते थे, एक दिन उन्हें यह मालूम हुवा की तथागत भगवान बुद्ध हमारे गांव में कल आ रहे है, वह बहुत ही खुश हुव उसने सोचा की कल में भगवान के दर्शन करके उनसे उपदेश लूंगा, कुछ सिकुगा , फिर सुबह भगवान बुद्ध अपने ५०० भिक्षु के साथ अल्वी नगर आए , अल्वी नगर वासियोने भगवान से भोजन करने के लिए आग्रह किया, भगवान वही रूक गए, वह निर्धन उपासक भी भगवान के दर्शन के लिए आतुर था , पर जब वह सुबह उठा तो उसने देखा की उसका एक बैल कही चला गया, वह उसको ढूंढने के लिए चला गया , भूखा प्यासा दिन भर उसे ढूंढता रहा, दुपहर होते होते उसने उस बैल को ढूंढ निकाला , और वैसे ही भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए चला गया, भगवान बुद्ध ने उसे देखा और अपने पास बिठाया , और उसे भर पेट भोजन के लिए आग्रह किया, उसने मना करने के बाद भी भगवान ने उसे खाना खिलाया , और कुछ धर्म के उपदेश भगवान बुद्ध ने उस गरीब को दिए, वह सुनकर वह बहुत हि धन्य हुवा, पर यह बात भिक्षू संघ में बिजली की तरह फैल गई, सब को आशर्य हुवा, क्योंकि ऐसा कभी भी भगवान ने नही किया था , उन भिक्षु ने भगवान से जिज्ञासा कि,  आप ने ऐसा क्यों किया, पहले तो आप ने ऐसा कभी भी नहीं किया , तब भगवान बुद्ध ने इन भिक्षु से कहा कि भूखे पेट किसी को धर्म नही सिखाया जा सकता है , नही कोई उपदेश , क्यों कि इस संसार में सबसे बड़ा रोग भूख हैं भूख से बडकर रोग इस संसार में नही है , क्यों कि भूख लगने के बाद शरीर की चेतना शरीर की भूख मिटाने के लिए जुड़ जाती हैं, फिर उसे कुछ दूसरा नही सूझता, उदाहरण, जब हमारे पैर में कांटा लग जाता है तो हमारी चेतना वही पैर के पास घूमती रहती है , जैसे सिर में दर्द हो तभी भी हमारी चेतना वही सिर के पास घूमती रहती हैं, उस समय हमारा ध्यान उसी चीज पे रहता हैं , इसीलिए भूख सबसे बड़ा रोग है और संस्कार सबसे बड़ा दुख है और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है, 

बोध : इस कहानी से हमे यह बात समझ में आई की भूखे पेट हम कुछ भी सिख नही पाते। नही धर्म नही संस्कार , क्योंकि शरीर का ध्यान पूरा भूख मिटाने में लग जाता हैं, अगर हम भूखे पेट प्राथना भी करे तो पूरी प्रार्थना पे भूख की भूख छा जायेगी.

। । ध न्य वा द। । 




मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

EK RAJA AUR BUDDHIMAN VAZIR KI KAHANI/एक राजा और बुद्धिमान वजीर की कहानी

 एक राजा और  बुद्धिमान वजीर की कहानी. एक दिन राजा का वजीर मर गया , राजा बहुत दुखी हुवा, क्योंकि राजा का वह प्रिय वजीर था , उस जैसा दूसरा मिलना बहुत ही कठिन था , ना के बराबर था , फिर राजा ने राज्य में घोषणा करदी की कोई बुद्धिमान वजीर चाहिए , और एक प्रतियोगिता रखी गई , हजारों की संख्या में लोगो ने भाग लिया , क्यांकि उसके बाद बड़ा ही महत्वपूर्ण पद मिलने वाला था, पर उस हजारों की संख्या में खाली ३ व्यक्तियों को ही चुना गया , उस तीन व्यक्तियों में से खाली एक बुद्धिमान व्यत्ति को चुनना था , वह तीन लोग उत्सुक थे की आगे की प्रतियोगिता क्या होगी , राजा की प्रतियोगिता के बारे में राज्य मे खबर फैल गई, की उन्हें एक कमरे में बंद करेंगे और उस कमरे को तला लगा देंगे , पर वह तला कोई मामूली तला नही रहेगा , उस ताले पर कुछ आंकड़े रहेंगे, गणित की पहिली रहोगी , जोभी इस गणित की पहिली को हल करके बाहर आएगा। वही राजा का वजीर बनेगा , यह बात उन तीन लोगो को मालूम हो गई , उस तीनो में से दो व्यत्ति ने बाजार में जाकर गणित के ऊपर जितनी भी किताबे थी सब ले आए , उसमे से तीसरा व्यक्ति बहुत ही अजीब था, वह बहुत ही शांत था , कुछ नही कर रहा था , शायद वह डर गया होगा या फिर उसने इस प्रतियोगिता से हार मनली होगी , ऐसा उस दो जन को लग रहा था , वे दोनो उसपे हस रहे थे , और उसे कहां की , की कुछ तो तयारी करो नहीतो तुम हार जावोगे , वह फिर भी शांत था , फिर राजा एक दिन पहिले आके उन तीनो को प्रतियोगिता के बारे में बताया , जो उन्हे पहिले से मालूम थीं, की तुम तीनो को एक कमरे में बंद किया जाएगा , और एक गणित की पहिली का तला दरवाजे में लगाया जाएगा जो भी पहिले बाहर आएगा वही व्यत्ति वजीर बनेगा , ऐसा कह के राजा चला गया , कल सुबह प्रतियोगिता के लिए जाना था , वह दोनो अभ्यास करने लगे , गणित की सारी किताबे पड़ डाली , रात भर सोए नही, क्योंकि पद भी उतना भरी था , पर जो तीसरा व्यक्ति था वह तो चादर वोड के सो गया, सुबह तीनो भी राज महल पोहचे तीनो में से दो के आंखे लाल थी चहरे पे थकान थी , रात भर न सोने के कारण , पर एक व्यक्ति की आंखे बहुत शांत थी चेहरा भी शांत था , प्रतियोगिता शुरू हो गई, उन तीनो को एक कमरे में बंद कर दिया , दोनो जन पहिली को हल करने में जुज गाए पर वह तीसरा व्यक्ति , एक कोने में शांत बैठा था , और अचानक उठके दरवाजा धकेला और बाहर आगया , और वही वजीर बन गया , दरवाजा को तो  ताला लगा ही नहीं था।  वह तो खुला था , पर उन दोनो ने यह भी मालूम करने की कोशिश नही की की दरवाजा सच में बंद है या फिर खाली धकेल के रखा है,

इस कहानी का अर्थ यह है , जीवन भी ऐसा ही है , हम कभी कभी पुस्तकी ज्ञान में इतना खो जाते है की , वास्तविकता में यह सच है या नहीं , यह भी जानने को कोशिश नही करते , और हम रेस लगाने में लग जाते है , इसीलिए अपनी बुद्धि को जागृत करना बहुत की जरूरी है , 

। । ध न्य वा द। । 


सोमवार, 3 अप्रैल 2023

NAGN RAJA ,BHAY AUR LALACH KI KHANI/नग्न राजा लालच और भय की कहानी .

  नग्न राजा और भय की कहानी , एक दिन एक फकीर राजा के दरबार में आया, और उसने राजा को कहा की हे राजा तुम अद्भुत क्षमता वाले हो , तुम प्रजा के रक्षक हो , तुम पालन हार हो, हे राजा फिर तुम इतने साधारण वस्त्र में क्यों हो , तुम तो साधारण मानुष से भी बडकर हो , तुम्हे तो देवता वो के वस्त्र पहने चाहिए, यह सुनकर राजा अशर्य चकित हो उठा और उस फकीर से कहा कहा मिलते है ऐसे वस्त्र मुझे बताओ मैं लेके अवुंगा, उस फकीर ने कहा नही राजा तुम प्रजा को ,घर को, बीबी बच्चो को छोड़कर तुम वहा नही जा सकोगे वहा तो हम जैसे फकीर ही जाते है , उस वस्त्र को लाने में ६ महिने लगेगे बहुत लंबा सफर है और वहा तक जाने का खर्चा भी बहुत है , राजा ने कहा खर्चे की तुम चिंता मत करो जितना चाहिए उतना मै तुम्हें दुंगा, फकीर ने कहा ठीक है , उस दरबार में बैठे हुवे जनता ने कभी भी किदर भी देवतावो के वस्त्र के बारे में नहि कहा सुना था, और नही कहा पड़ा था, पर दरबार में राजा को कौन बताए ,राजा का अन्हंकार जाग उठा था । राजा ने कहा तुम ले आवो, वह फकीर रोज दरबार में आता था और हजारों रुपये ले जाता था , राजा के सेवक रक्षक भी कुछ नही बोल रहे थे उन्हें मालूम था कि ये फकीर राजा को लूट रहा है , ६ महिने होने को आए अब तक तो उस फकीर ने राजा से बहुत संपति हासिल की थी राजा को बहुत लूटा था , ६ महिने को कुछ दिन बाकी थे तब राजा ने उस फकीर के घर के बाहर अपने सैनिक को को पहरा देने लगा दिया , ताकि वह फकीर कही भाग न जाए , पर फकीर भागा नही, नही डरा , वह ६ महीनेनबाद एक बहुमुल्य पेटी लेके के दरबार मे आया , वह पेटी बहुत ही अद्भुत दिख रही थी , सोने हीरे से जड़ी थी , दरबार लोगों से भरा था हजारों की संख्या में लोग थे उस देवताओं के वस्त्र देखने के लिए , उस फकीर ने पेटी को खोलने से पहिले काह की ये वस्त्र उसी को दिखाई पड़ेंगे जो अपनी बाप की संतान हो , अपने बाप से पैदा हुवे हो,और फिर उसने पेटी को खोला , उस पेटी में कुछ भी नही था वह पेटी खाली मालूम हो रही थी पर कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था , बोलेंगे भी कैसे , राजा भी देखता रहा  , और कहा ये तो अद्भुत है , उस फकीर ने राजा से कहा की राजा तुम अभी अपने पुराने वस्त्र निकालो और ये देवताओं के वस्त्र पहनो, उस फकीर ने पेटी में से एक न दिखाने वाला कोट निकाला और राजा को पहनाया , और फिर कमीज , फिर धोती , ऐसे करके उसने रजको नग्न कर दिया , सभी देख रहे थे की कुछ भी नही है राजा के शरीर पे. पर सब लोग तालिया बजाके राजा की जयजयकार कर रहे थे राजा को भी पता था कि कुछ भी नही दिख रहा है, पर भय के कारण वह और सभी लोग जो दरबार मे थे वह कुछ भी नही कह पाए , पर बात इतनी तक नही रुकी , उस फकीर ने कहा की , इस अद्भुत देवताओं के वस्त्र पहने हुवे राजा का तो जुलूस निकाला जाना चाहिए ताकि सभी लोग इस देवतावोके वस्त्र देख सके ,यह देख एक बच्चा अपने पिता से बोला की राजा तो नग्न है वस्त्र तो कही दिखाई नही दे रहे ,पिता ने उसे डाट के चुप कराया , बोला की कुछ मत बोल नही तो मुसीबत खड़ी हो जायेगी . इस तरह राजा भय अन्हंकार और लालच के कारण  नग्न हो गया.

बोध : इस कहानी से हमे यह सिख मिलती हैं की , हमे डराके रखा गया है, ऐसा भय की हम न चाहते हुए भी , अस्तित्व में है ऐसा मानने के लिए मजबूर किया है, 

बच्चे ने हिम्मत करकेअपने पिताजी से बोला, की कोई वस्त्र नही है , बच्चे तो भय मुक्त होते निरागास होते है, निष्पाप होते है ,उन्हें संसार के बारे कुछ भी मालूम नही होता, वे जो देखते है उसी पे विश्वास रखते है , पर उसे इस संसार के लोग उसे भय दिखाते है और जो चीज अस्तित्व में नहीं है ,नही कभी देखी गई उसपर विश्वास रखने को मजबूर करते है ,राजा के दरबार मे जो भीड़ थी उस भीड़ में से कोई भी व्यक्ति बाहर आकर सच का सामना नही कर सका , भीड़ से हटकर नही  कुछ बोल सका , इसका अर्थ यह है की हम सब को डराके रखा गया है, इसी डर के कारण कित्येक वर्ष हम जो नही है उसपर विश्वास रखते आ रहे है,और आगे भी रखेंगे , अंधश्र्धा और लालच में हम अपने अस्तित्व को खो रहे है। 

!!ध न्य वा द!!



मंगलवार, 28 मार्च 2023

KYA HAI SANKLP SHAKTI /क्या हैसंकल्प शक्ति.


 आज हम संकल्प शक्ति के बरे मे जनेंगे . हम जिवन मे कुछ कर ना चाहते है या फीर अपनी कौनसी तो बुरी आदत छोडना चाहते हो या जीवन मे कुछ पान चाहते हो. या फ़िर हमे अपने मन पसन्द कम के लिये समय नहि मिल रहा है. तो आज हम हमारी संकल्प शक्ती को जानेंगे. संकल्प शक्ति हमे कहि बजार या  किसि मन्दिर,मज्झित,से नहि ला सकते है , यह शक्ति हमरे भितर हि शमिल है। बस उसे ठिक से इस्तेमल करना आना चाहिये । आप जोभि काम करना चाहते हो या अपनि बुरि आदत छुडवाना चाहते हो तो ,दिमग को उसके बरे मे बार बार बता ते रहो । कि मुझे यह सकल्प करना है। या मेरि यह आदत झोड्नि है। तो आप का दिमग और पुरा शरिर उस काम के लिये लग जयेगा । उदहरण: जैसे कि आप को बहुत जोर से प्यास लगि है, और आप को कहि भि पानि नहि मिल रहा है। तब आप का पुरा शरिर दिल दिमाग पानि डुंडने मे लग जयेगा । क्योकि अपने शरिर को पता है कि पनि नहि मिला तो मै मर भि सकता हु। हमरि संकल्प शक्ति भि इसि तरह से काम करति है.। हम संकल्प  कब और कैसे करे। सुबह 5 मिनिट सांस अन्दर लेते समय संकल्प  करना है । जोभि आप को काम करना है उस के बरे मे सोचना है, और बार बार दौराना है। फ़िर सांस छोडते समय दोबारा ऐसा हि करना है. इसे फ़िरसे दोपहर मे 5 मिनिट करना है.  और फ़िर रात को सोते समय 5 मिनिट करना है। ऐसा करने आपके जिवन मे जरूर बदलाव आयेंगे. 

। । ध न्य वा द। । 

  

बुधवार, 22 मार्च 2023

STORY OF VEER VIKRAM ADITYA /कहानी है विर विक्रम आदीत्य की, जिंदगी हमे रोज नये अवसर या नई भेट देती है.

 ये कहानी है विर विक्रम आदीत्य की . यह बहुत प्राचिन  कथा है। इस कहानि को अग्यनि पडे तो मनोरंज समझे .और ग्यनि पडे तो जिवन का सरा सार समझ मे आये. राजा रोज अपने दरबार मे सबेरे के समय लोगो की समस्या सुनने बैटते थे . राजा के नगर के नीवासी रोज अपनी कुछ न कुछ समस्या बताते और कुछ लोग राजा को भेट दे जाते . उस मे एक फकीर रोज राजा को एक जंगली फल भेट देता . कभी राजा ने देखा नही ऐसा जंगली फल राजा को देता . राजा उस फल को वजीर को देता . ऐसा ही क्रम दस सालो तक चलता रहा . वो फकीर रोज आता था और रोज एक बडा सा जंगलि फल राजा को भेट देता . राजा भी उस फल को वजिर के पास देता . एक दीन रोज की तरह वो फकिर आया और वही जंगल फल राजा को दिया . उस दिन राजा ने उस फल को वजीर के हात मे न देते अपना एक पाला हुक बंदर को दे दिया . बंदर ने जैसे ही फल को खाना सुरु किया . तब उसमे से एक बडा सा हीरा नीकला वह हिरा बहुत ही मौल्यवान और बडा था रजा ने कभिभि ऐसा हिर नहि देखा था. यह देख के राजा के हो श ऊड गये . उसने वजीर सो कहां की बाकी के फल किदर हे . वजीर को  भी राजा के साथ काम करते समय बहुत सावधानी बरकनी पडती है .क्योकि रजा कभिभि किसि भि वस्तु का हिसाब मांग लेते। इसि वजहसे वजीर ने वे सारे फल मह ल के तलघर मे फ़ेके थे . जब राजा और वजीर वे फल देखने गये तब वाहां से बहुत गंदी बदबू आ रीही थी . सारे फल सड गये थे . फर उस हर . एक फल मेसे हीरे चमक रहै थे . चारो तरफ हीरे ही हीरे . रजा ने उस फ़किर से कहां कि ये क्या चम्तकार है तुम क्यो दस  साल से मुझे ये  जंगली फल दे रहे हो तब उस फ़किर ने राजा से कहां होश ना हो तो जिन्दगि ऐसे हि छुट जाति है. तुम जगे तो थे पर होश तुम्हे दस साल के बाद आया.

दोस्तो यह कहानि बेताल पच्चीसी की हे . हैतो ये बहुत मामुली सी कहानी पर इसका अर्थ बहुत बडा हे। 

बोध . यह . कहानी ये सीखाती है की जिंदगी हमे रोज नये अवसर या नई भेट देती है पर हम उसे देख नही पाते . जोसे राजा तो जगा था सब देख रहा था पर उसे होश आने . के लिये दस साल लगे . जागो तो होश पुर्ण  नहि तो जिंदगि ऐसे हि कट ति जयेगि
। । ध न्य वा द। । 
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गुरुवार, 16 मार्च 2023

STORY OF SANT KABIR/ यह कहानी है प्रेम और विश्वास की . यह कहानी है संत कबीर की है.

यह कहानी है प्रेम और विश्वास की . यह कहानी है संत कबीर की है. एक दीन संत कबीर अपने भक्त जन के साथ भजन कीर्तन कर रहे थे . जेसे ही भजन खतम हुवा अन्होने सभी को आग्रह किया की सब खाना खाके जाना . ओर कबीर ने अपने बीबी से सभी लोगो के लीये खाना बनाने के लिये कहां .सॊ दोसो लोगो का खना बनाना था, कबीर की बीवी ने रसोई घर मे देखा ' तो कुछ भी नही था खाना बनाने के लीये . सब राशन खतम हुवा था . कबीर की बीबी ने यह बात कबीर को नही बताई . बताती भी कैसे . कबीर के सम्मान का भी तो खयाल रखना था . वह दुकान दार के पास ग ई ओर उधार पे राशन देने को कहां . दुकानदार ने राशन  देने सो मना किय कहां की पहीले का उधार उभी तक दीया नाही . और अभी तुम्हे और उधारी चाहिये . ऐसे तो मेरा दीवाला नीकल जायेगा . और मे उधारी नही दे सकता . कबीर के बीबी ने बहुत विनती की . सभी भक्ता जन घरपे हे ओर कबीर ने  3नसे आग्रह किया हे की खाना खाके जाना . यह कबीर के सम्मान का प्रश्न है . कृपया राशन देदो . चाहे  तुम मुझसे कुछ भी मांगलो . यह सुनकर दुकान दार ने सोचा और उस से कहां की ठीक है . मै तुम्हे राशन देता हु और पीछला उधार भी भुल जाता हु . पर तुम्हे आज रात मेरे साथ सोना होगा (कबीर की बीबी जो थी ' सुंदर तो रही होगी . नही भी सुंदर रही हागी तो . कबीर के सानिध्य . उनके सथ  मे रहके सुंदर तो  रहेगी . ) जरा ही सोचे बीना कबीर के बीबी ने कहां की ठीक हे आज रात को आ जाऊंगी . अभी मुझे राशन देदो . असने सभी को खाना खीलाके तृप्त किया . और फीर रात को सज धज के कबीर के सामने बैठी . बरसात भी बहुत हो रहि थी. कबीर ने कहां क्या बात है . आज कुछ  हे क्या . आज तुम इतनी सजी हो . तो कबीर के बीबी ने कहां अब तुमसे क्या छुपाना . दुकान दार ने राशन देने से मना किया था. राशन के बदले आज रात सोने को बुलाया . कबीर ने कहां ठीक है . पर तुम जवोगी कैसे बरसात तो बहुत जोरो से हो रही है . भीग के जावोगी तो उसे अच्छा भी नही लगेग . चलो मै तुम्हे घोड आता हु रात भी बहुत हुई है . छाता भी एक हे . दोनो एक ही छाता मे चले गये . वहां दुकान दार उसकी राह देख रहा था . उसके मन मे बहुत सारे विचार चल रहे थे . की कबीर के बीबी ने जराही संकोच बीना हा करदी . क्या कोई प्रतीवृता ऐसा कर सकती है . वह मन ही मन मे डर भी  रहा था . कबीर ने उसे घर तक ले आया खुद भीगते रहे पर उसने उपने बीबी को नही भीगाया . कबीर नो कहां तुम हो आवो अपना काम नीपटा आवो मे यही राह देखता हु . रात भी बहुत है ओर बरसात रुकने का नाम नही ले रही है . और छाता भी एक है . इतने मे दरवाजे पे दस्तक दी . अब तो वह बहुत ही हैरान हुवा . उसने दरवाजा खोला तो कबीर की बीबी सामने खडी थी . वह बहुत ही हेरान हुवा . उसने घर उन्दर लेके बीठाया और देखा की इतनी तेज बरसात मे भी यह भीगी नही . बारीश का एक भी बुंद तुम्हरे बदन पे नही हे तूम तो पुरी तरह से सुखी हो . यह कैसे हो सकता है . कबीर के बीबी ने दुकानदार से कहां . की भीगती कैसे कबीर जो साथ ले आये ,खुद भीग ते रहे ओर मुझे जरा भी नही भीगाया . दुकानदार डर गया उसके पेरो से जमीन खीस क गई .. छाती की धकधक बड गई. . उसने कहां की कहा हे कबीर . कबीर के बीबी ने कहा . वे तो बाहर ही ईन्तजार कर रहे हे . पर तुम तुम्हार काम करलो वापस . घर जाके ब्रम्ह मुहर्त पे उठना है . दुकान दार को मन ही मन मे बहुत ही शर्म आई . उसने दरवाजा खोला और कबीर समने खडे थे, वह दुकनदर से बोले तु तेरा काम करले  संकोच मत कर। वह दुकनदर झट से चरनो मे गीर पडा . ओर उन दोनो से क्षमा मांगी ..

कबीर जैसे संत कभि कभि हि एस संसर मे जन्म लेते है 

बोध : पती के सम्मान के खातीर अपना पतीवृता धर्म को भी त्याग दीया . और कबीर ने भी अपने पत्नी पर पुरी तरीके से प्रेम और विश्वास दिखाया . आगर पती पत्नी एक दुसरे पर गहरा प्रेम और विश्वास करे तो कोई भी ताकत उनका कुछ भी नही बीगाड सकते है .


EK CHIDIYA AUR CHIDE KI KAHANI/ एक चिड़िया और चीडे की कहानी।

 एक चिड़िया और चौड़े में प्रेम हो गया, दोनो ने सोचा की अब हमे शादी कर लेनी चाहिए, दोनो ने शादी कर दी अब वह दोनो एक साथ रहने लगे, चिड़िया ने ...