बुधवार, 19 जुलाई 2023

EK PATTHAR AUR MURTIKAR KI KAHANI/एक पत्थर ओर मूर्तिकार की कहानी।

 एक दिन एक व्यक्ती ने मूर्तीकार को अपने मंदिर के लिये  एक मूर्ती बनांने के लिये काहा। मूर्तिकार ने जंगल मे जकर २ बहुत की उमदा किसम के पत्थर ले आया, और मूर्ती कार अपने सभी औजार लेके पत्थर को ताराशने लगा, जैसे ही मूर्तिकार ने पहिली छीनी पत्थर पे मारी,तो अंदर से एक आवाज आई की मुझे दर्द हो रहा है, मूर्तिकार ये सून नाही पाय ओर वापस अपने काम मे लग गाय , जैसे ही उसने छीनी दोबारा पत्थर मारी, तो अंदर से जोरसे आवाज आई , की मुझे बहुत दर्द हो रहा है , मूर्ती कार ने उससे कहा , की मे एक मूर्ती कार हु, मै तुम्हे तराश के मूर्ती बना रहा हू , अब तुम थोडा दर्द सह लो , तब ऊस पत्थर ने काह की नाही मे इस दर्द को नही सह सकुंगा तुम दुसरा पत्थर धुंड लो, उसने बाजू मे रखे पत्थर से पूछा की मे एक मूर्ती कार हू, क्या मे तुम्हे तराष के मूर्ती बनावू , तुम्हे थोडा बहुत दर्द होगा , ऊस पत्थर ने काह , तुम बनवो मूर्ती मेरी सहमती है, कुछ दिनो के बाद मूर्ती बनके तयार हो गई , बहुत ही सुंदर लग रही थी, अगले ही दीन वाह व्यक्ती मूर्ती कार के पास अपनी मूर्ती लेने जाने आ गया , वाह मूर्ती देख कार बहुत की खुश हो गया, बहुत ही अलोकिक मूर्ती ऊस मूर्तिकार ने बनवाई थी , जब वाह व्यक्ती मूर्ती को ले जा रहा था , तभी उसकी नजर ऊस पाहिले वाले पत्थर मे पाडी, उसने मूर्ती कार से काह क्या तुम मुझे ये पत्थर दे सकते हो, ऊस मूर्ती कार ने काह , हा जरूर पर तुम इसका क्या कारोगे, उसने काह की इस मूर्ती के सामने रखुंगा, भक्त जन को नारियाल फोडने के लिये काम आएगा, ओर फिर वाह व्यक्ती ऊस मूर्ती को ले गाय ओर उसकी स्थापना की, ऊस पत्थर को नारियल फोडणे के लिये मूर्ती के सामने रख दिया, अब रोज उसपे नारीयल फोडे जाते हैं, ओर मूर्ती पे फुल बरसाये जाते हैं

 इस कहानी का बोध । हम अपने आप को तराश ते नाही, हम अपने comfort zone से निकल नाही पाते, हम जब तक कठीण परिश्रम ओर कडी मेहनत नही कार लेते तब तक हम मूर्ती नही बन सकते हैं, नहीतो ऊस पत्थर की तरह रोज दीन भर ऊस नारीयाल से आजीवन पिडा मिलती रहेगी और उस पीड़ा को सहने भी पड़ेगी।तो दोस्तो तुम्ही हो तुम्हारे जीवन के शिल्पकार।

!!धन्यवाद!!




सोमवार, 17 जुलाई 2023

APANE HUNAR KO PEHACHANO/अपने हुनर को पहचानो।

दोस्तो आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से अपने हुनर को पहचान के लोगो के सामने लायेंगे, इसे आप हुनर से रोजगार भी कह सकते हो।आप के पास जो भी हुनर है उसे पहचानो और उसे प्रकाशित करो , जिससे आपकी उपजिविका को थोड़ी मदद मिलेगी, ऐसा कोई भी इंसान नही है जिसमे कोई भी हुनर नही होगा कुछ न कुछ तो जरूर होगा, इस भाग दौड़ और महंगी दुनिया में रहने के लिए अपने आप में कोई तो हुनर जरूर होना चाहिए, एक उदाहरण देता हूं, मिर्जा गालिब बहुत ही पियक्कड़ थे याने बहुत शराब पीते थे । बहुत ही मस्त मौला इंसान थे , उधर की शराब पीते थे , पैसे नही रहते थे , पर उनके पास शायरी और कविता का हुनर था । इसीलिए आज उन्हें पूरी दुनिया जानती हैं, उनके ऊपर फिल्म भी बनाई है। मरने के बाद भी दुनिया उनके हुनर के कारण उनको याद करती है। और एक उदाहरण देते हुवे , भगवान बुद्ध को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई , तब भगवान बुद्ध ने उस ज्ञान को अपने तक सीमित नहीं रखा , उन्होंने दुनिया को अपना ज्ञान बाट दिया , बाटने से हमेशा बढ़ता है कभी भी काम नही होता , ऐसे बहुत सारे उदाहरण है, जैसे मेरी मां सरसो के तेल में लहसुन और अजवाइन डालके थोड़ा गरम करके सर्दी और बारिश की मौसम में उस तेल से मालिश करती हैं, आज मैं उस प्रकार का तेल बनाकर लोगो को बेचता हु, लोगो को उसका फायदा होता है और मुझे उसके बदले में पैसे मिलते है। थोड़े कम मिलते है पर , गाड़ी भाड़ा निकल जाता है, 
मेरे प्यारे दोस्तो अपना समय बर्बाद मत करो कुछ न कुछ करते रहो , अगर आपके पास कुछ भी हुनर नही है , तो यूट्यूब पर बहुत ही अच्छे अच्छे u tuber है, जो आप को मुफ्त में हुनर सिखाइगे।

!!धन्यवाद!!


रविवार, 16 जुलाई 2023

EK LADKI KI KAHANI/एक लडकी की कहानी

 एक लाडकी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया , बहुत की काम उम्र मे उसे यह पुरस्कार मिला , उसके बाद उसने और अगे की शिक्षा लेने की सोची, घर से दूर एक गाव था, वाहा एक गुरुजी राहते थे, वाहा जाके उसने आगे की शिक्षा के लिये अपनी सहमती जाताई, गुरुजी ने देखा और उसे काहा, जावो रस्ते पर उखड़े हुवे पत्थर कुटो और नाय रस्ता बनावो , रस्ता बहुत खराब हुवां है, रोज रोज उखड रहा है , तुम उखडे हुवे पत्थर को कुटो और नया रस्ता बनावो ओर द्यांन रहे जब तक मैं न काहू रुकने के लिए तूम रुकना नही , और किसी भी समय मैं तुमसे बोलू यह करने के लिए तुम तयार रहना , उसने सोचा नाही कोई फार्म भरने दिया नाही कोई पुस्तक पडने दी यह कैसे गुरू हैं.वह सुबह सुबह चली गई , मन में सोचा की कैसा गुरु है , कैसा काम दिया है करने के लिए, मैं नोबेल विजेता हु, यह सोचकर वह पत्थर कुटने चली गइ.धूप निकल आई वह पत्थर कुटते कूटते थक गई , उसका शरीर पसीने से भीग गया, हात पे छाले आ गए , उसने सोचा अब ये कहेगा की रूक जवो, उसे तरस आएगा , मैं एक लड़की हु , मुझसे पत्थर कूटने के लिए लगा दिया , ये कोन सी शिक्षा है, और वह बाहर बैट के सिगरेट पी रहा है । वह देखने भी न आया की मै कोतनी मेहनत से ये पथ्यर कुट रही हू करी ब करीब शाय के ८ बजे उसने रुकने को कहां, वह थक के उसके सामने आई तो उस गुरु ने उसे देखा तक नही, वह अंदर चली गई आंख मे थोडे असु भी थे हात पे छाले पडे थे . उसने मन ही मन मे सोच की कल से यह काम नही करूंगी। उस गुरुजी ने फिर रात को २ बजे उसे उठाया और काम पे लगजावो ऐसा कहां . वह लडकी फीर से काम पे लग गई . कभी न खत्म होने वाला रास्ते के पथ्यर कुटने लगी . उसने सोचा की ऐसा  करके तो मे मर जाऊंगी . पर गुरू को जरा भी फर्क नही पड रहा था. वह तो मस्त था दीन भर सिगरेट बीडी का धुवा उडाता रहता था . ऐसा करते करते 3 महीने बीत गये . उस लड़की ने सोचा की तीन महीने बीत गये पर मै कुछ भी नही साख पाई . फीर एक दिन गुरु ने कहां तुम जावो तुम्हरी शीक्षा पूरी हो गई . वह खुशी खुशी घरपर गई . जब वे घर के अंदर गई तो उसे घुटन जैसे होने लगी सभी महंगी वस्तू अब उसे न के बराबर लगने लगे . सब नश्वर लगने लगा . उसके मन के अंदर से सभी प्रकार के दोष दुर जो हो गये थे . लोभ ' क्रोध' मोह . इर्ष्या वह एकदम नई बनकर आई थी . उस लड़की को अब पता चला की तीन महीने से वह गुरुजी मेरे अंदरसे सभी दुशीत वीचारों को बाहर निकाल राहा था  . उसने वापस जाकर उस गुरू के चरण स्पर्श कोये . और आर्शीवाद लाया .

इस कहानी का बोध . जीस को भी जीवन का सत्य समझ आया फीर उसके सामने सभी प्रकार के पुरस्कार नीरर्थक है . सब नश्वर है . खाली सत्य ही अमर है .



मंगलवार, 11 जुलाई 2023

EK BANDER KI KAHANI/एक बंदर की कहानी!

एक बंदर की कहानी, कही साल तप , साधना करने बाद एक साधु पे भगवान प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए, और उसे वरदान मांगने को कहा, साधु ने कहा मुझे मानुष से देवता बना दो, तब भगवान बोले की यह तो मैं नही कर सकता, क्यों की ये मृत्यू लोक है , यहां जन्मे हर जीव को मरना ही होता है, अगर तुम्हे भगवान बना दिया तो तुम अमर हो जावोगे, और ये नियति के विरुद्ध है, पर एक उपाय है, हिमालय पर्वत पर एक झील है, उसमे जो भी मनुष्य डूपकी लगता है वह भगवान बन जाता है, और जो भी प्राणी , पक्षी डूपकी लगता हैं वह मनुष्य बन जाता है, वाहा तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी, पर वहा का रास्ता बहुत कठिन है,उस साधु ने कहा मैं जरूर वहा जाऊंगा, उसी झिल के पास एक पेड़ था , उस पेड़ पर एक बंदर और बंदरिया रहती थी, कही सालो से वह वही रहते आए थे, पर उन्हे उस झील के बारे मालूम नही था, एक दिन वह साधु झील के पास पहुंच गया, बंदर


और बंदरिया ने देखा की यह साधु यहां क्या करने आया , इतने सालो में कभी भी कोई मानुष्य को नही देखा तो ये क्यू यहां आया, उन्होंने देखा की वह साधु झील को प्रणाम करके उसके अंदर चला गया, कुछ देर बाद वह साधु भगवान बनके बाहर आया, बंदर देख कर वे चकित रह गए , उन्हे इसके बारे में मालूम न था, यह देख उन दोनो ने उसी झिल में कूद गए, और कुछ देर बाद बहुत ही सुंदर मनुष्य बन कर बाहर आए , बंदरिया तो बहुत ही सुंदर और आकर्षक दिख रही थी, दोनो भी बहुत खुश हुवे, पर बंदर ने सोचा की क्यू न और एक बार इस झील में दुपकी मारू, यह सुनकर उस सुंदरी ने इनकार किया,कहा की कही तुम फिर से बंदर न बन जावो, पर वह नाही मना , आखिर बंदर जो था , मनुष्य होने के बावजूद भी उसके हरकते बंदर जैसे थे , उसने उसकी नही सुनी, और कूद गया, कुछ देर बाद वह बंदर बनकर बाहर आया, बंदरिया जो सुंदर स्त्री बनी थी वह बहुत नाराज हो गई , और वह बंदर कही बार डूपकि लगाने के बाद भी बंदर रहा ,कुछ महीने बाद बंदर को किसी मदारी ने पकड़ लिया, और उस सुंदरी पर एक राजा मोहित होके,उससे शादी कर ली, कुछ दिन बाद राजा के दरबार में  बंदर का खेल दिखाने मदारी उसी बंदर को ले आया, रानी और बंदर ने एक दूसरे को देख के पहचान लिया , रानी ने कहा काश तुम मेरी बात मान लेते, अति लालच और ज्यादा की चाह ने तुम्हे फिरसे बंदर बना दिया, यह सुनकर बंदर रोने लगा और कहा अगले जनम में तुम्हारी राह देखूंगा,रानी ने भी कहा कि मैं भी तुम्हारी राह देखूंगी। और उस मदारी ने खेल समाप्त कर के बंदर को ले गया, दिनों के आंखो में आसु थे।

कहानी का बोध। की इंसान को कभी भी लालची नही होना चाहिए, जितना है उसी मे समाधान मानना चाहिए, अति करने के चाह में कही हम बंदर की तरह फिरसे बंदर न बन जाए।

!!धन्यवाद!!


मंगलवार, 4 जुलाई 2023

NASTIK AUR KUTTE KI KAHANI/ नास्तिक और एक कुत्ते की कहानी

 एक नास्तिक और कुत्ते की कहानी, एक बहुत ही बड़ा नास्तिक था। वह हर एक मठ मंदिर और आश्रम में जाकर , आत्मा , मन शरीर, भगवान कर्म, ऐसे न जाने कैसे कैसे सवाल पूछता रहता था, पर उसका उसे मन चाहा जवाब नही मिलता था, फिर एक दिन वह महान तपस्वी साधु के पास जाकर अपने सवाल पूछा , पर उस महान तपस्वी साधु भी उसका जवाब न दे सका , फिर उस साधु ने , उस नास्तिक से कहा , की एक गांव है वहा एकनाथ नाम का एक इंसान रहता है , उससे जाकर अपने सवाल पूछो, अगर उससे भी जवाब नही मिला तो समझो की, इस संसार में कोई नही है ऐसा जो तुम्हारे सवाल का जवाब देगा , वह नास्तिक इस एकनाथ को ढूंढने निकला , पहुंचते पहुंचते सुबह हो गई, गांव पोहचतेही उसने किसी गांव वाले से पूछा की एकनाथ कहा रहता है, उसने कहा वहा एक शंकर का मंदिर है वही मिलगा एकनाथ, मंदिर देखते ही उसके चेहरे पे खुशी आई , उसने मन ही मन सोचा की अब मेरे सवालो का जवाब मिलेगा , वह जैसे ही मंदिर के भीतर गाया, उसने देखा की एक आदमी शंकर के पिंडी के ऊपर पाव रखकर सो रहा है , उसको बहुत अजीब लगा , फिर सोचा कोई पागल मालूम होता है , साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त में उठते है, शायद एकनत कही ध्यान करते होगे। फिर उसने एक मंदिर ने आने वाले व्यक्ति से पूछा की एकनाथ कहा मिलेंगे , उसने कहा यही तो है एकनाथ , अब सो रहे है, उस नास्तिक के मन में जोर से झटका लगा , और सोचा ये कैसा इंसान है, शंकर के पिंडी के ऊपर पैर रखकर सो रहा है, मैं नास्तिक तो हु पर इतना भी नही, मेरे मन में कभी भी ऐसी सोच नही आयेगी और नही मै ऐसी हिम्मत करूंगा , भला शंकर के पिंडी पे कोई पैर रखकर थोड़ी सीता है, सुबह के आठ बज चुके है, साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त पर उठ जाते है, मेरा यह आना व्यर्थ हुवा, यह से जाना ही उचित है, फिर मन में खयाल आया की आया हु तो इस एकनाथ से मिलके की जाता हु, उस तपस्वी ने मुझे इसे मिलनेको कहा था , अब आया हू तो मिलकर ही जावूंगा, वह नास्तिक बहुत निराश होकर उस एकनाथ के उठने की रह देखता रहा, करीब १० बजे एकनाथ उठे , उस नास्तिक ने उनसे कहा की साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त पर उठते है , तुम तो अभी उठे है , एकनाथ ने कहा , मैं जभी उठता हु तो ब्राम्ह मुहूर्त होता है, क्यों की मै ही ब्रह्म हु, और तुम भी ब्रह्म ही हो, जब उठे तब ब्रह्म मुहर्थ होता है, उस नास्तिक ने कहा पर तुम शंकर के पिंडी पर पैर रखकर क्यू सोए थे, तब उसने कहा , जो दिखाता है वह कभी कभी सत्य नही होता , मन की आंखों से देखोगे तो चारो तरफ शंकर की शंकर है , और ये सब उसका ही तो है, मैं भी तुम भी, इस नास्तिक को कुछ अजीब लगा , उसने सोचा यह आके मेरा समय व्यर्थ ही नष्ट हो गया , फिर उस नास्तिक ने कहा की तुम नहाते नही हो क्या , उसने कहा मेरा मन बुद्धि , एकदम साफ है , फिर शरीर साफ रखने की क्या जरूरत , मन किया तो नहा लेता हु , नहीतो ऐसे ही रहता हु, फिर उस नास्तिक ने सोचा यह रुकने का कोई मतलब नही बनता , उसने एकनाथ से कहा की मैं जाता हु , एकनाथ ने कहा आज रूक जावो खाना खाकर जाना देर बहुत हो गई है, फिर एकनाथ ने गांव में भिक्षा मानकर कुछ आटा जमा किया , और आटे की बाटी बनाने लगा , उसने जैसे ही एक बाटी चूले पर से निकली , वहा से एक कुत्ता आकार उस बाटी को मुंह में लेकर भागने लगा , यह देखकर एकनाथ जोर से चिल्लाया , रूक जा राम , बहुत मरूंगा , ऐसा बोलकर कुत्ते के पीछे भागा , यह देखकर वह नास्तिक हैरान हवा,वह नास्तिक भी उसके पीछे भागने लगा। उसको लगा की अब ये पागल कुत्ते को मार डालेगा ,उस कुत्ते की जान बचाने वह भी भागा, एकनाथ ने कुत्ते को पकड़ा और जोर जोर से चिल्लाया की राम ऐसा गलत काम मत करो,एक तो एक मिल दौड़ाया मेरी बाटी लेके भागा , तुझे मैने हजार बार कहा की , बाटी को घी में डालने के बाद ले जा , सुखी बाटी अच्छी नहीं लगेगी तुझे , तू मेरी सुनता ही नही, वह  नास्तिक ये सब दृष देख रहा था, फिर उस एकनाथ ने कुत्ते के मुंह से बाटी निकली , वह बाटी कुत्ते की लार से पूरी गीली हो गई थी , बाटी हात में लेकर कुत्ते को गोदी में उठाकर वापस मंदिर के तरफ जाने लगा , और उसने उस कुत्ते की लार से भरी झुटी बाटी घी में पूरी डुबाकर फिर उस कुत्ते को दी , और कहा फिर जो तू सुखी बाटी लेकर खाने लगा तो तेरी हड्डी पसली एक कर दूंगा , घी वाली बाटी लेकर जाना, उस नास्तिक की आंखे खुल गई और उसने आखरी सवाल किया की कुत्ते का नाम राम क्यू रखा , उसने कहा देखो तो हर जगा राम है , मुझमें तुम्हारे भीतर, हर सजीव निर्जीव वास्तु में , फिर क्यों जाना मंदिर में मठ में , सब कुछ अपने भीतर है , यह सुनकर उस नास्तिक की आंखे खुल गई, और सत्य के दर्शन उसे उस दिन हो गए , उसने एकनाथ जी को धन्यवाद दिया और उनके पैर पड़कर हसते हंसते लौट गया।

बोध।। इस कहानी का बोध यह है, को सब कुछ अपने भीतर है , बस उसे जानना और समझना चाहिए, मन और कर्म साफ हो तो , ब्रह्म भी हम है और राम भी, 

।।धन्यवाद।।



गुरुवार, 22 जून 2023

EK DEVDUTT, AUR YAMRAJ KI KAHANI/एक देवदुत्त और यमराज की कहानी

एक देवदुत्त और यमराज की कहानी, एक दिन यमदाज के अदेशा नुसार देवदूत एक स्त्री के प्राण हरने पहुंच गए , प्राण हरने के समय देवदूत ने देखा की, उस महिला की तीन छोटी छोटी बेतिया है , उसमे से एक मां के मृत शरीर के स्तन से दूध पी रही है , दूसरी रोते रोते थक गई और वैसे ही सो गई , उसके आंख के आसू भी अभी सूखे नही, और तीसरी उस मृत मां के बाजू में बैठ कर बहुत जोर जोर से रो रही हैं, यह देख कर देवदूत की आखें भर आई , उसे बहुत ही दया आई , उसने सोचा की मैं अगर इसके प्राण हरलू तो मुझे पाप लगेगा , उसे उन छोटी छोटी बच्चियों पे तरस आया, उसने मन ही मन में सोचा की मैं यमराज से उस मां के लंबे अयु के लिए प्रार्थना करूंगा , और वे देवदूत यम लोक पहुंचे, तब यमराज ने कहा ही कहा है उस स्त्री के प्राण , देवदूत ने यमराज से कहा , उस महिला के तीन छोटी छोटी बेतिया है , बहुत रो रही है, उन्हें मां की जरूरत है , यमराज मैं आपसे विनती करता हु की , उन्हे थोड़ी आयु दे , वे लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएगी तभी मैं उसके प्राण हर लूंगा , इस पर यमराज बहुत ही क्रोधित हो उठे , उसने देवदूत से कहा, तुम कोन होते हो नियति को बदलने वाले, तुमने मेरा आदेश नही माना , तुमने नियति को बदलना चाहा, ये भी पाप है , इसीलिए मैं तुम्हे श्राप देता हु , जबतक तुम अपने मूर्खता पर तीन बार हसोंगे तब तक तुम्हें पृथ्वी लोक पे रहना होगा , देवदूत ने यमराज का श्राप स्वीकार किया और पृथ्वी लोक पर साधारण मनुष्य के भाती पहुंच गए, एक दिन एक आदमी गांव से शहर जा रहा था , वह एक बहुत गरीब चमार था, थोड़े बहुत पैसे इकट्ठा करके , बीवी और बच्चो के लिए शहर से कपड़े और बच्चो के लिए कुछ खिलोने लाने जा रहा था , तभी उसने देखा की एक आदमी नग्न अवस्था इतनी तेज ठंड में ठिठुर कर सो रहा है , उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं है , उस चमार ने अपने शरीर पे से एक कपड़ा  उतारा और उस आदमी को दिया , फिर उसे पता चला की उसने कही दिनों से खाना भी नही खाया , उस चमार को उस आदमी की बहुत दया आई,और उसने उसे खाना खिलाया और नए कपड़े भी दिए, उस चमार के सारे पैसे खर्च हो गए , बीवी और बच्चो के लिए कुछ नहीं ले पाया , वह बहुत ही दुखी था , पर उसे इस बात की भी खुशी थी की मैने किसी गरीब की मदट की , घर जाकर बीवी और बच्चो मुझापे गुस्सा करेंगे , पर उसने उसकी फिकीर नही की, उसने उस आदमी से पूछा की तुम रहते कहा हो , उस आदमी ने कहा , कही नही , मेरा कोई घर नही , ना की कोई सगा संबंधी, रिश्तेदार कोई नही है मेरा इस दुनिया में, उस चमार को उसकी दया आई, और उसने कहा की तुम मेरे घर चलो, पैसे तो सारे खर्च हो गए और तुम्हे भी साथ ले जा रहा हु , आज घर में मेरी खैर नहीं, बीवी मुजपर गुस्सा करेगी , बहुत क्रोधित हो उठेगी चिल्लाएगी पर तुम शांत रहना , कुछ दिन के बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा , मैं तुम्हे चप्पल , जूते सिलना सिखावूंगा, और उसे घर ले गया , अपने बीवी को सारी बात बताई , बीवी बहुत क्रोधित हो गई , चिल्लाने लगी , भला बुरा कहने लगी , बच्चे रो रहे थे , बहुत आस लगाए जो बैठे थे, उतने में वह आदमी हसने लगा , और उसने मन ही मन सोचा , की जो तुम्हारे घर आया है वह एक देवदूत है , उसके आने से ही सब पीड़ा दुख दरिद्रता, खत्म हो जाते है , सुख शांति संपति इसकी बरसात होती है , पर वह लोग समझ नही पाए , उनकी दृष्टि वह सब नही देख पाए इसलिए वह हस पड़ा , चमार ने पूछा तुम क्यों हस रहे थे , उसने कहा मैं तो अपने मूर्खता पे हसा हु , इस चमार ने पूछा पर क्यू, देवदूत ने कहा समय आने पर तुम्हे सब बता दूंगा , कुछ ही दिनों में उस देवदूत ने चमार के सारे काम सिख लिए। , वह अब बहुत ही सुंदर और बेहतर चप्पल जूते सिलने लगा , देखते ही देखते पूरे शहर में उसके जूते और चप्पल बिकने लगे , उसने कभी सोचा भी नही होगा उतना धन उस चमार ने कमाया , बहुत दूर दूर से लोग चप्पल और जूते सिलवाने आते थे , राजा के दरबारी, मंत्री , सभी वहा से ही , चप्पल बनवाते , राजा के जूते भी अब वही देवदूत बनवाता था , एक दिन एक मंत्री बहुत की कीमती चमड़ा लेके चमार के पास आया  , और राजा के लिए नए जूते इस चमड़े से सिलवाने के लिए कहा, उस मंत्री ने कहा की तुम्हे जितने दिन चाहिए उतने लो, पर जूते अच्छे बनवाना , उस देवदूत ने कहा ठीक है , दो ही दिनों में उसने उस चमड़े से एक चप्पल सिलवाई , यह देख कर चमार क्रोधित हो उठा , अरे ये तुमने क्या किया , जूते सिलवाने के बजाय तुमने चप्पल सिलवाई , यह तो मरने के बाद सिलवाती है , अब राजा हमे दंड देगा , सजा देगा , हमे गाव से बाहर निकले गा, ये तुमने क्या किया , यह सुनकर वह देवदूत दूसरी बार हसा, चमार ने पूछा की तुम क्यों हस रहे हो ,क्या तुम्हे जरा भी डर नहीं है , देवदूत ने कहा , समय आने पर मैं तुम्हे सब कुछ बता दूंगा, उतने ने एक मंत्री ने , उस चमार को खबर दी, की तुम जूते मत सिलवाना , राजा मार गया , अब तुम चप्पल सिलवाना , वह चमार आचार्य हो गया , क्यू की देवतुत जो था वह, वह मानुष के दृष्टि से आगे देख सकता था, देवदूत को और एक बार अपने मूर्खता पे हसना था, और वह हस पड़ा, फिर एक दिन एक महारानी दूर देश से आई अपने बेटियो के लिए चप्पल बनवाने , उस महारानी और उसके साथ उसकी तीन लड़कियां भी थी , इस महारानी का थाट देखने जैसा था, सोने के रथ में आई थी बहुत सारे सिपाही अंगरक्षक, के साथ आई थी , बहुत सारे आभूषण थे , वह देख चमार देखते ही रह गया , उस महारानी ने कहा की मुझे और मेरी तीन बेटियो के लिए जूते सिलवाने है , उस देवदूत ने कहा अपने बेटियो को बुलाओ मैं उनके पेरो का का माप लेता हु, जैसे ही उसने उस तीन लड़कियों को देखा , देवदूत को वह सब याद आया , उसने महारानी से कहा , अगर मैं गलत नही तो ये तीन लड़कियां तुम्हारी नही है , महारानी ने कहा हा, यह तो मुझे एक मृत मां के शरीर के पास मिली , बहुत रो रही थी, कोई जान पैचनाने वाला भी नही था , और वे बहुत ही सुंदर थी , मुझे कोई भी अपनी संतान नहीं थी , तो मैने इन्हे गोद ले लिया  यह सुनकर वह देवदूत तीसरी याने आखरी बार अपने मूर्खता पर हस पड़ा, चमार ने कहा तीन बार तुम हस दिए , अब तो मुझे वह राज बताओ, देवदूत ने अपने असली रूप में आके उस चमार के परिवार को दर्शन दिए , और अपनी हकीकत बतादी, सभी धन्य हुवे , देवदूत सबको अपना आशीर्वाद देके वापस यम लोक में चले गए, यमराज से क्षमा मांगी और अपने काम पी जुड़ गए
इस कहानी का बोध यह है , कभी कभी हैं कुछ चीजे नियति के हात सोप देना चाहिए , परमात्मा ने हमारे लिए कुछ न कुछ जरूर सोचा होगा , और हमारे बड़ो की आज्ञा का अपमान नही करना चाहिए, मां , बाप , हमारे गुरु होते है , उनकी आज्ञा का पालन हमे जरूर करना चाहिए , क्योंकि उनकी दृष्टि हमारे दृष्टि से कही अधिक लंबे तक देख सकती है , फिर हमें जिंदगी में कभी भी अपने मूर्खता पर हसन नही पड़ेगा।
।।धन्यवाद।।



बुधवार, 7 जून 2023

EK RAJA AUR USAKE TIN BETON KI KAHANI/एक राजा और उसके तीन बेटों की कहानी.

 एक राजा और उसके तीन बेटों की कहानी, राजा अब बूढ़ा हो चुका था , राजा को अपनी राज गद्दी और राज्य का सारा निर्णय अपने किसी एक बेटे को देना था , पर तीनो भी समान तौर पर काबिल थे , निर्णय लेना राजा को कठिन हो रहा था , तभी राजा ने अपने बूढे नौकर को कहा , जो किसान था , उससे पूछा की कुछ तरकीब निकालो, उस बूढ़े ने राजा को एक ही तरकीब बताई, एक दिन सुबह राजा ने अपने तीनो बेटों को बुलाया , और तीनो को एक एक गेहू का  बोरा भेट दी , और उनसे कहा की इसे संभाल के रखो, मैं तीर्थ यात्रा को जा रहा हूं,जब मैं तीर्थ यात्रा से लौटू तो मुझे ये वापस लौटा देना , तुम उत्तरदाई होगे इस अनाज के ,जैसे मैने दिया है वैसे ही लौटना है तुम्हे , तो इसे बहुत संभाल के रखो ,तीर्थ यात्रा करके आने का समय एक साल दो साल या तीन साल भी लग सकता है, तीनो ने अपने अपने गेहूं के बोरी लेके सोचने लगे , बड़े बेटे ने सोचा की मैं इसे तिजोरी मैं रख दूंगा , जब पिताजी वापस आयेंगे तो इन्हे मैं पिताजी को लौटा दूंगा, उसने बडी सावधानी से और सुरक्षा के साथ तिजोरी में रख दिया, छोटे बेटे ने उसे किसी जमीन पे फिकवा दिया , जिस जमीन पे उसने फिकवा दिया वह जमीन जंगल जैसी थी ,उसपे बहुत घास थी, बहुत सारे कंकर पत्थर थे, उसने न उस घास को काटा नही उस जमीन के कंकर पत्थर साफ किए , नही उस जमीन की जाज की की यह जमीन खेती के लिए योग्य है या नही , नही उसे खेती के बारेमे कोई जानकारी थी, तीसरे बेटे ने सोचा , की अगर मैं , इसे बड़े बाई जैसे तिजोरी में रखी तो वाह कुछ महीने बाद खराब हो जायेंगे, राख हो जायेंगे, मैं इससे खेती करूंगा , जो बाद में एक बोरी के कई बोरी बनेंगे , उसने एक जमीन ली , उसमेसे सभी घास काट दी, कंकर पत्थर साफ किए, जमीन की जाज की , और उसे उपजाव बनाया, फिर उसमे गेहूं के बीज बोए, तीन साल के बाद उनके पिताजी वापस आए , और अपने तीनो बेटो से मिले, और अपने गेहूं की बोरी वापस मांग ली, बड़े बेटे ने बड़ी सुरक्षा के साथ अपनी बोरी तिजोरी से बाहर निकली और , अपने पिताजी को सोप दी, पिताजी ने बोरी को खोल के देखा तो सब दाने राख हो चुके थे , सब सड़ गाएं थे , राजा ने उसे कहा , मैं ने तो तुम्हे जीवित गेहु के  दाने दिए थे, जो विकसित हो सकते थे, जिसे तुम तीन सालो में कई हजार दाने तयार करते, इसकी कीमत तुम नही समझ पाए ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌, और तुमने जीवित दाने मार दिए, तो तुम राज कैसे संभालो गे , इसीलिए मैं तुम्हे ये राज्य नही दे सकता , फिर राजा ने अपने छोटे बेटे से कहा की तुम्हारे दाने कहा है , उसने कहा में तो उसे , किसी जमीन पे फेक आया , तो राजा ने उससे पूछा की क्या गेहूं की फसल आई , उसने कहा , मैं ने देखा ही नहीं इन तीन सालो ने , राजा और उसके बेटे ने जाके देखा , की वहा पर कुछ भी नही था, केवल घास ही घास थी , राजा ने कहा तुमने भी , जीवित दानो को मार दिया , तब छोटे बेटे ने कहा , ऐसे तो कही पेड़ बिना लगाए उगते है , फिर उसे बो देने की क्या जरूरत है , राजा ने कहा की तुम भी ना समझ हो, तुम पर भी में भरोसा नही कर सकता , तुम्हे भी मैं ये राज्य नही दे सकता, तब राजा ने , अपने मंजले बेटे से कहा , की तुमने क्या किए गेहूं के दानों का , उसने राजा को , खेती में लेके गया , तब राजा को अपने मंजले बेटे ने चारो तरफ फैला हुवा गेहूं का खेत दिखाया , और कहा ये सब आपके उस बोरी से मैं ने यह खेत इन तीन सालो मे बनाया , राज देखके बहुत खुश हुवा, चारो तरफ हरियाली ही हरियाली , सुगंधित हवा, सूरज की किरणे पेड़ो पे चमक रही थी , राजा प्रसन्न होकर उसने अपने मंजले बेटे को अपनी राज गद्दी सोफ दी, इस तरह से बहुत आसानी से और समझदारी से राजा ने , राज्य को नया और सबसे अनोखा युवराज दिया ,

इस कहानी का बोध यह है ,, परमात्मा भी हमे छोटे छोटे बीज रूप मै कई अवसर देता है , उस अवसर में बड़ी संभावना होती है नया और बड़ा राज्य करने की ,पर हम भी राजा के तीन बेटो के जैसा व्यवहार करते है, कई लोग मिला हुवा धन तिजोरी में रखते , जो मरने के बाद राख हो जाता है , ना उससे वो अधिक धन कमाता है , नही किसी को मदत करता है , कुछ लोग मिला हुवा धन को , ऐसे ही किसी जगह पर लगा देते है , बाद में न उसके ऊपर ध्यान देते है नही उसकी चिंता करते है , पर बदमे उनके हात मे खालि पछतावा हि रहता है. अपने पैसे के व्यवहार के राजा के मंजले बेटे जैसा करना चाहिए, जो कही गुना बड़े , जिससे खुद का भरण पोषण हो जाए और दुसरो का भी , 

। । ध न्य वा द। । 




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