मंगलवार, 28 मार्च 2023

KYA HAI SANKLP SHAKTI /क्या हैसंकल्प शक्ति.


 आज हम संकल्प शक्ति के बरे मे जनेंगे . हम जिवन मे कुछ कर ना चाहते है या फीर अपनी कौनसी तो बुरी आदत छोडना चाहते हो या जीवन मे कुछ पान चाहते हो. या फ़िर हमे अपने मन पसन्द कम के लिये समय नहि मिल रहा है. तो आज हम हमारी संकल्प शक्ती को जानेंगे. संकल्प शक्ति हमे कहि बजार या  किसि मन्दिर,मज्झित,से नहि ला सकते है , यह शक्ति हमरे भितर हि शमिल है। बस उसे ठिक से इस्तेमल करना आना चाहिये । आप जोभि काम करना चाहते हो या अपनि बुरि आदत छुडवाना चाहते हो तो ,दिमग को उसके बरे मे बार बार बता ते रहो । कि मुझे यह सकल्प करना है। या मेरि यह आदत झोड्नि है। तो आप का दिमग और पुरा शरिर उस काम के लिये लग जयेगा । उदहरण: जैसे कि आप को बहुत जोर से प्यास लगि है, और आप को कहि भि पानि नहि मिल रहा है। तब आप का पुरा शरिर दिल दिमाग पानि डुंडने मे लग जयेगा । क्योकि अपने शरिर को पता है कि पनि नहि मिला तो मै मर भि सकता हु। हमरि संकल्प शक्ति भि इसि तरह से काम करति है.। हम संकल्प  कब और कैसे करे। सुबह 5 मिनिट सांस अन्दर लेते समय संकल्प  करना है । जोभि आप को काम करना है उस के बरे मे सोचना है, और बार बार दौराना है। फ़िर सांस छोडते समय दोबारा ऐसा हि करना है. इसे फ़िरसे दोपहर मे 5 मिनिट करना है.  और फ़िर रात को सोते समय 5 मिनिट करना है। ऐसा करने आपके जिवन मे जरूर बदलाव आयेंगे. 

। । ध न्य वा द। । 

  

बुधवार, 22 मार्च 2023

STORY OF VEER VIKRAM ADITYA /कहानी है विर विक्रम आदीत्य की, जिंदगी हमे रोज नये अवसर या नई भेट देती है.

 ये कहानी है विर विक्रम आदीत्य की . यह बहुत प्राचिन  कथा है। इस कहानि को अग्यनि पडे तो मनोरंज समझे .और ग्यनि पडे तो जिवन का सरा सार समझ मे आये. राजा रोज अपने दरबार मे सबेरे के समय लोगो की समस्या सुनने बैटते थे . राजा के नगर के नीवासी रोज अपनी कुछ न कुछ समस्या बताते और कुछ लोग राजा को भेट दे जाते . उस मे एक फकीर रोज राजा को एक जंगली फल भेट देता . कभी राजा ने देखा नही ऐसा जंगली फल राजा को देता . राजा उस फल को वजीर को देता . ऐसा ही क्रम दस सालो तक चलता रहा . वो फकीर रोज आता था और रोज एक बडा सा जंगलि फल राजा को भेट देता . राजा भी उस फल को वजिर के पास देता . एक दीन रोज की तरह वो फकिर आया और वही जंगल फल राजा को दिया . उस दिन राजा ने उस फल को वजीर के हात मे न देते अपना एक पाला हुक बंदर को दे दिया . बंदर ने जैसे ही फल को खाना सुरु किया . तब उसमे से एक बडा सा हीरा नीकला वह हिरा बहुत ही मौल्यवान और बडा था रजा ने कभिभि ऐसा हिर नहि देखा था. यह देख के राजा के हो श ऊड गये . उसने वजीर सो कहां की बाकी के फल किदर हे . वजीर को  भी राजा के साथ काम करते समय बहुत सावधानी बरकनी पडती है .क्योकि रजा कभिभि किसि भि वस्तु का हिसाब मांग लेते। इसि वजहसे वजीर ने वे सारे फल मह ल के तलघर मे फ़ेके थे . जब राजा और वजीर वे फल देखने गये तब वाहां से बहुत गंदी बदबू आ रीही थी . सारे फल सड गये थे . फर उस हर . एक फल मेसे हीरे चमक रहै थे . चारो तरफ हीरे ही हीरे . रजा ने उस फ़किर से कहां कि ये क्या चम्तकार है तुम क्यो दस  साल से मुझे ये  जंगली फल दे रहे हो तब उस फ़किर ने राजा से कहां होश ना हो तो जिन्दगि ऐसे हि छुट जाति है. तुम जगे तो थे पर होश तुम्हे दस साल के बाद आया.

दोस्तो यह कहानि बेताल पच्चीसी की हे . हैतो ये बहुत मामुली सी कहानी पर इसका अर्थ बहुत बडा हे। 

बोध . यह . कहानी ये सीखाती है की जिंदगी हमे रोज नये अवसर या नई भेट देती है पर हम उसे देख नही पाते . जोसे राजा तो जगा था सब देख रहा था पर उसे होश आने . के लिये दस साल लगे . जागो तो होश पुर्ण  नहि तो जिंदगि ऐसे हि कट ति जयेगि
। । ध न्य वा द। । 
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गुरुवार, 16 मार्च 2023

STORY OF SANT KABIR/ यह कहानी है प्रेम और विश्वास की . यह कहानी है संत कबीर की है.

यह कहानी है प्रेम और विश्वास की . यह कहानी है संत कबीर की है. एक दीन संत कबीर अपने भक्त जन के साथ भजन कीर्तन कर रहे थे . जेसे ही भजन खतम हुवा अन्होने सभी को आग्रह किया की सब खाना खाके जाना . ओर कबीर ने अपने बीबी से सभी लोगो के लीये खाना बनाने के लिये कहां .सॊ दोसो लोगो का खना बनाना था, कबीर की बीवी ने रसोई घर मे देखा ' तो कुछ भी नही था खाना बनाने के लीये . सब राशन खतम हुवा था . कबीर की बीबी ने यह बात कबीर को नही बताई . बताती भी कैसे . कबीर के सम्मान का भी तो खयाल रखना था . वह दुकान दार के पास ग ई ओर उधार पे राशन देने को कहां . दुकानदार ने राशन  देने सो मना किय कहां की पहीले का उधार उभी तक दीया नाही . और अभी तुम्हे और उधारी चाहिये . ऐसे तो मेरा दीवाला नीकल जायेगा . और मे उधारी नही दे सकता . कबीर के बीबी ने बहुत विनती की . सभी भक्ता जन घरपे हे ओर कबीर ने  3नसे आग्रह किया हे की खाना खाके जाना . यह कबीर के सम्मान का प्रश्न है . कृपया राशन देदो . चाहे  तुम मुझसे कुछ भी मांगलो . यह सुनकर दुकान दार ने सोचा और उस से कहां की ठीक है . मै तुम्हे राशन देता हु और पीछला उधार भी भुल जाता हु . पर तुम्हे आज रात मेरे साथ सोना होगा (कबीर की बीबी जो थी ' सुंदर तो रही होगी . नही भी सुंदर रही हागी तो . कबीर के सानिध्य . उनके सथ  मे रहके सुंदर तो  रहेगी . ) जरा ही सोचे बीना कबीर के बीबी ने कहां की ठीक हे आज रात को आ जाऊंगी . अभी मुझे राशन देदो . असने सभी को खाना खीलाके तृप्त किया . और फीर रात को सज धज के कबीर के सामने बैठी . बरसात भी बहुत हो रहि थी. कबीर ने कहां क्या बात है . आज कुछ  हे क्या . आज तुम इतनी सजी हो . तो कबीर के बीबी ने कहां अब तुमसे क्या छुपाना . दुकान दार ने राशन देने से मना किया था. राशन के बदले आज रात सोने को बुलाया . कबीर ने कहां ठीक है . पर तुम जवोगी कैसे बरसात तो बहुत जोरो से हो रही है . भीग के जावोगी तो उसे अच्छा भी नही लगेग . चलो मै तुम्हे घोड आता हु रात भी बहुत हुई है . छाता भी एक हे . दोनो एक ही छाता मे चले गये . वहां दुकान दार उसकी राह देख रहा था . उसके मन मे बहुत सारे विचार चल रहे थे . की कबीर के बीबी ने जराही संकोच बीना हा करदी . क्या कोई प्रतीवृता ऐसा कर सकती है . वह मन ही मन मे डर भी  रहा था . कबीर ने उसे घर तक ले आया खुद भीगते रहे पर उसने उपने बीबी को नही भीगाया . कबीर नो कहां तुम हो आवो अपना काम नीपटा आवो मे यही राह देखता हु . रात भी बहुत है ओर बरसात रुकने का नाम नही ले रही है . और छाता भी एक है . इतने मे दरवाजे पे दस्तक दी . अब तो वह बहुत ही हैरान हुवा . उसने दरवाजा खोला तो कबीर की बीबी सामने खडी थी . वह बहुत ही हेरान हुवा . उसने घर उन्दर लेके बीठाया और देखा की इतनी तेज बरसात मे भी यह भीगी नही . बारीश का एक भी बुंद तुम्हरे बदन पे नही हे तूम तो पुरी तरह से सुखी हो . यह कैसे हो सकता है . कबीर के बीबी ने दुकानदार से कहां . की भीगती कैसे कबीर जो साथ ले आये ,खुद भीग ते रहे ओर मुझे जरा भी नही भीगाया . दुकानदार डर गया उसके पेरो से जमीन खीस क गई .. छाती की धकधक बड गई. . उसने कहां की कहा हे कबीर . कबीर के बीबी ने कहा . वे तो बाहर ही ईन्तजार कर रहे हे . पर तुम तुम्हार काम करलो वापस . घर जाके ब्रम्ह मुहर्त पे उठना है . दुकान दार को मन ही मन मे बहुत ही शर्म आई . उसने दरवाजा खोला और कबीर समने खडे थे, वह दुकनदर से बोले तु तेरा काम करले  संकोच मत कर। वह दुकनदर झट से चरनो मे गीर पडा . ओर उन दोनो से क्षमा मांगी ..

कबीर जैसे संत कभि कभि हि एस संसर मे जन्म लेते है 

बोध : पती के सम्मान के खातीर अपना पतीवृता धर्म को भी त्याग दीया . और कबीर ने भी अपने पत्नी पर पुरी तरीके से प्रेम और विश्वास दिखाया . आगर पती पत्नी एक दुसरे पर गहरा प्रेम और विश्वास करे तो कोई भी ताकत उनका कुछ भी नही बीगाड सकते है .


गुरुवार, 9 मार्च 2023

गुरु और शिष्य की कहानी और चिंता

 दो फकीर की कहानी हे .गुरु और शिष्य बुडा गुरु और युवा शिष्य . दोन्ही जंगल मे साथ रहते थे . रोज कीसी भी  गाव मे जाके भगवान के नाम का प्रचार प्रवचन करते थे . ऐसा उनका रोज का ही काम . एक दिन शिष्य ने देखा की गुरु के  चेहरे पर कुछ बदलाव दिखाई दे रहा है . कुछ चिंतीत कुछ  परेशान नजर आ रहे  है . स्वभाव मे कुछ बदलाव सा दिख रहा था .जो कभी ना देखा इतने साल मे उसे कुछ दिनो से  गुरू के चेहरे पे दिखाई पडा,पर कुछ बोला नही, देखता ही रहा .झोली में गुरु का जी अटका था . बार-बार गुरु अपनी झोली को टटोल रहा है . कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा . गुरू की झोली जादातर शिष्य ही डोता था पर कुछ दोनो से गुरू ही झोली को डोने लगा. फिर एक दिन शिष्य ने सोचा की आज देखता हु की इस झोली मे ऐेसा क्या हे.कीस कारन गुरु परेशान है . वे ऐसे ही जंगल मे सफर करते  समय वे दोनो एक कुवे के जगह रूक गये . गुरूने झोली कुवे के पास रखी और शिष्य को कहां जरा ध्यान रखना . मे जाके मंत्र जाप करता हु हात मुह धोके झोली ले आना . शिष्य ने झोली मे सोने की एक इट देखी. उसे .देख शिष्य को गुरू के चिंता का कारण समझ आया . उसने उस ईट को उस कुवे मे फेंक दीय और उसके वजन के बराबर एक पथ्यर रख दिया  . अब दोनो जंगल के रास्ते से चल पडे . गुरु ने शिष्य से आप नी झोली वापस लेली .. और झोली को सीने से लगा कर चलने लगा . गुरु अपने शिष्य से कह रहा था की कही दूर गाव भी नजर नही आ रहा है . क ही दुर किसी गाव की लाईट भी नही दीख रही है . आमावस की अंधेरी रात है . चोर लुटेरो का डर भी है . यह सुन के शिष्य हसे . ऐसा ही गुरू कुछ क हे तो शिष्य हसे . दो मील चलने के बाद . गुरु ने शिष्य को हसने का कारण पुछा . तभी शिष्य ने कहां तुम्हारी चिंता तो मै उस कुव्वे मे फेंक आया . यह सुनकर गुरु की सासे थंब गयी, गहरा सदमा पहुचा . पैरो के नोचे से जमीन खीसक गयी . कुछ समय गुरु  स्तब्ध रह गया . क्या कहु कुछ समझ नाही आ रहा था गुरु को . फिर कुछ पल . भर मे बोध भी हुवा . की दो मील तक मे पथ्थर डोता रहा . यह सोच कर की इसमे साने की इट हे . मे कीस भ्रांती मे था . मै मोह की भ्रांती मे था . जींदगी भर  मे इसी मोह मे रहता की यह सोने की इट है . और मे पथ्थर को दो मील सोना समझता रहा . मोह इट मे नही था .मेरे भ्रांती मे था . मोह . इट मे होता तो इस दो मील   तक मोह का कुछ कारन ना था चींता की कोई वजह न थी . मेरी आसक्ती मेरे भीतर थी बाहर के इट मे नही . जींदगी भर भी आसक्त बना रहता था अगर ये भ्रांती बनी रहती की ये इट सोने की है . ओर तकक्षण भ्राती तूट गई जब ये जान की इट पथ्थर की है सोने की नही . झोला वही गीरा दिया और खील खीला के हस दीया . वही बैटा अब कहां जाना है अब कोई गांव नही डूडना . अब यही वृक्ष के नीचे विश्राम करेंगे रात भी बहुत हो गई है . शिष्य ने कहां अंधेरा बहुत है गाव भी नजर नही आ रह हे चोर तुटेरे लफंगे इनका भी डर हे . गुरु ने कहा चुप कर अब कैसा डर अब केसी चिंता सोना तो नही है हमारे पास . तो लटने वाल भी क्या लुटेंगा. आज तो मे बडे आराम से सोवुंगा . इसे हम छुटना कहते है. छोडा नही छुटा . फीर बोध हुवा सब उपद्रव भीतर है बाहर नही.

समझ :--सब उपद्रव भीतर है बाहर नही। अगर हम भितर से सक्षम रहे, स्थिर रहे तो कोइ भि मोह मया चिन्त हमरा कुछ नहि बिगड सकति है। 

!!ध न्य व द!!

 


शुक्रवार, 3 मार्च 2023

Ek Raja aur Bhikari ki Kahani (Daan Ka Arth)/एक राजा और भीकरी की कहानी. (दान का अर्थ )

 एक राजा और भीकरी की कहानी है . एक गाव मे एक भीकारी रहता था भीक मांग के वह अपना गुजारा करता था . पर वह भीकारी बहुत ही चालाक था।  ओ जब भी भीक मागनें जाता था तब वह अपने भीक्षा पत्र मे कुछ चावल राखता था . तकी अस चावल को देख ओर भी लोग चावल देथे ते . कभी कभी लोग भीक्षा पात्र खाली देख के कुछ नही देते . उन्हे हैसा लगता था की पता नही यह कैसा भीकारी होगा की इसे किसीने भी कुछ नही दीया . एक दीन वह सुबह सुबह अपनी झोली और भीक्षा पात्र और कुछ चावल लेके नीकला . तब उसे रास्ते मे राजा का रथ दीखा . उसने सोचा यह तो सौभग्य की घडी हे . आज का दीन बहुत ही अच्छा है . दरबार मे तो हम जैसे भिकारी को तो द्वारपाल मंत्री अंदर जाने नही देते राजा से मिलने नही देते . और राजा भी उनको आने देते जीससे कुछ काम हो . नहीतो हमे बाहर से ही भेज देते है . आज मोका अच्छा है . आज राजासे कुछ ना कुछ तो जरूर . मांगुगा राजा मनाभी नही करेगा . भिकारी ने सोचा आज यह मोका हात से नही जाने दुंगा . बहुत सारे मन मे वीचार लेके भीकारी आगे बड रहाथा . सोचता रहा आज क्या माग् क्या नही . देखते ही देखते राजा का रथ उसके सामने आके रुका . वह भीकारी कुछ मांगने से पहीले ही राजाने अपनी झोल्ली फैलादी . और बोला कुष डाल मेरे झोली मे . मेने आज शपथ ले रखी है की जोभी पहीला व्यक्ती दीखे उसे कुछ न कुछ मांगुगा . तो तु देर ना कर डाल मेरे झोली मे . जो हे तेरे पास, और जाने दे मुझे आगे और लंबा सफर तैय करना हे . तो तु डाल जल्दी . भीकरी तो सोच मे पड गया . य ह कौनसी मुसीबत आ पडी ..   आज तक मैने किसीको कुछ नही दीया और आज देने की बारी आ गयी .. मै हमेशा लेता ही रहा  . वह बहुत सोचने लगा . उसक हात झोली मे जाता और सोचता की कीतना दु राजा को . झोली मे चावल की मुठ्ठी भरता और फिर  छोड देता . ऐसा ही कुछ देर चलता रहा .  फीर उसने झोली मे से एक चावल का दाना निकाला ओर राजा के झोली मे डाल दीया . एक  चावल के दाने से उसका मन बहुत ही विचलीत हो उठा . और सोचने लागा आज एक दाना कम हुवा . चेहरे पे उदसी थी . घर पहुचा तो बीबी ने देखा की आज तुम बहत ही उदास हो . तुम्हारी झोली रोज से काफी भरी हे . फीर तुम उदास क्यू हो . क्या बात है . वह अपनी पत्नी से बोला  आज का दिन बहुत ही खराब गया . देने वालों ने ही  मांग लीया . बामुश्कील देना पडा . बहुत ही पश्चात्ताप हुवा . कभी किसी को दीया नाही .  आज दीया तो मुझे बहुत दुख हुवा . उसने अपने बीबी से कहां कुछ मत पुछ . उसने उपनी झोली को पलटा दी . ओर सब चावल बाहर निकाले . अभी तक तो उदास था . जब उसने देखा तो छाती पिट के रोने लगा . अब उसे ओर भी ज्याद पश्चाताप होने लगा . उसने देखा की उस चावल के दाने तो दाने थे  बस एक दाना सोने का था  . उसने सोचा की पूरी झोली राजा को दे देथी तो आज सारे चावल सोने के हो जाते . और रोज तो राजा नही मिल ता .


ये तो बस एक काहानी है . पर इस काहनी का बोध यही हो . जीवन मे हम जो भी देते हे वह सोना बन जात है . और जो अपने पास रहता है वह मिट्टी बन जाती हे . मरते वक्त हर आदमी अपनी झोली पलटा के देख ले तो . जीवन भर जो उसने दिये वह सब  सोने के दाने  बन जाता हो . और जो बच जाता हे वह मीटटी का ढेर . प्राथना का अर्थ पाना नही देना है . ऐसा जीवन जो देने का जीवन हो . दान . धर्म .प्रेम करुणा . जीतना अप दोगे उतना ही सब सोना बन जायेगा .

धन्यवाद



EK CHIDIYA AUR CHIDE KI KAHANI/ एक चिड़िया और चीडे की कहानी।

 एक चिड़िया और चौड़े में प्रेम हो गया, दोनो ने सोचा की अब हमे शादी कर लेनी चाहिए, दोनो ने शादी कर दी अब वह दोनो एक साथ रहने लगे, चिड़िया ने ...