एक नास्तिक और कुत्ते की कहानी, एक बहुत ही बड़ा नास्तिक था। वह हर एक मठ मंदिर और आश्रम में जाकर , आत्मा , मन शरीर, भगवान कर्म, ऐसे न जाने कैसे कैसे सवाल पूछता रहता था, पर उसका उसे मन चाहा जवाब नही मिलता था, फिर एक दिन वह महान तपस्वी साधु के पास जाकर अपने सवाल पूछा , पर उस महान तपस्वी साधु भी उसका जवाब न दे सका , फिर उस साधु ने , उस नास्तिक से कहा , की एक गांव है वहा एकनाथ नाम का एक इंसान रहता है , उससे जाकर अपने सवाल पूछो, अगर उससे भी जवाब नही मिला तो समझो की, इस संसार में कोई नही है ऐसा जो तुम्हारे सवाल का जवाब देगा , वह नास्तिक इस एकनाथ को ढूंढने निकला , पहुंचते पहुंचते सुबह हो गई, गांव पोहचतेही उसने किसी गांव वाले से पूछा की एकनाथ कहा रहता है, उसने कहा वहा एक शंकर का मंदिर है वही मिलगा एकनाथ, मंदिर देखते ही उसके चेहरे पे खुशी आई , उसने मन ही मन सोचा की अब मेरे सवालो का जवाब मिलेगा , वह जैसे ही मंदिर के भीतर गाया, उसने देखा की एक आदमी शंकर के पिंडी के ऊपर पाव रखकर सो रहा है , उसको बहुत अजीब लगा , फिर सोचा कोई पागल मालूम होता है , साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त में उठते है, शायद एकनत कही ध्यान करते होगे। फिर उसने एक मंदिर ने आने वाले व्यक्ति से पूछा की एकनाथ कहा मिलेंगे , उसने कहा यही तो है एकनाथ , अब सो रहे है, उस नास्तिक के मन में जोर से झटका लगा , और सोचा ये कैसा इंसान है, शंकर के पिंडी के ऊपर पैर रखकर सो रहा है, मैं नास्तिक तो हु पर इतना भी नही, मेरे मन में कभी भी ऐसी सोच नही आयेगी और नही मै ऐसी हिम्मत करूंगा , भला शंकर के पिंडी पे कोई पैर रखकर थोड़ी सीता है, सुबह के आठ बज चुके है, साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त पर उठ जाते है, मेरा यह आना व्यर्थ हुवा, यह से जाना ही उचित है, फिर मन में खयाल आया की आया हु तो इस एकनाथ से मिलके की जाता हु, उस तपस्वी ने मुझे इसे मिलनेको कहा था , अब आया हू तो मिलकर ही जावूंगा, वह नास्तिक बहुत निराश होकर उस एकनाथ के उठने की रह देखता रहा, करीब १० बजे एकनाथ उठे , उस नास्तिक ने उनसे कहा की साधु संत तो ब्रह्म मुहूर्त पर उठते है , तुम तो अभी उठे है , एकनाथ ने कहा , मैं जभी उठता हु तो ब्राम्ह मुहूर्त होता है, क्यों की मै ही ब्रह्म हु, और तुम भी ब्रह्म ही हो, जब उठे तब ब्रह्म मुहर्थ होता है, उस नास्तिक ने कहा पर तुम शंकर के पिंडी पर पैर रखकर क्यू सोए थे, तब उसने कहा , जो दिखाता है वह कभी कभी सत्य नही होता , मन की आंखों से देखोगे तो चारो तरफ शंकर की शंकर है , और ये सब उसका ही तो है, मैं भी तुम भी, इस नास्तिक को कुछ अजीब लगा , उसने सोचा यह आके मेरा समय व्यर्थ ही नष्ट हो गया , फिर उस नास्तिक ने कहा की तुम नहाते नही हो क्या , उसने कहा मेरा मन बुद्धि , एकदम साफ है , फिर शरीर साफ रखने की क्या जरूरत , मन किया तो नहा लेता हु , नहीतो ऐसे ही रहता हु, फिर उस नास्तिक ने सोचा यह रुकने का कोई मतलब नही बनता , उसने एकनाथ से कहा की मैं जाता हु , एकनाथ ने कहा आज रूक जावो खाना खाकर जाना देर बहुत हो गई है, फिर एकनाथ ने गांव में भिक्षा मानकर कुछ आटा जमा किया , और आटे की बाटी बनाने लगा , उसने जैसे ही एक बाटी चूले पर से निकली , वहा से एक कुत्ता आकार उस बाटी को मुंह में लेकर भागने लगा , यह देखकर एकनाथ जोर से चिल्लाया , रूक जा राम , बहुत मरूंगा , ऐसा बोलकर कुत्ते के पीछे भागा , यह देखकर वह नास्तिक हैरान हवा,वह नास्तिक भी उसके पीछे भागने लगा। उसको लगा की अब ये पागल कुत्ते को मार डालेगा ,उस कुत्ते की जान बचाने वह भी भागा, एकनाथ ने कुत्ते को पकड़ा और जोर जोर से चिल्लाया की राम ऐसा गलत काम मत करो,एक तो एक मिल दौड़ाया मेरी बाटी लेके भागा , तुझे मैने हजार बार कहा की , बाटी को घी में डालने के बाद ले जा , सुखी बाटी अच्छी नहीं लगेगी तुझे , तू मेरी सुनता ही नही, वह नास्तिक ये सब दृष देख रहा था, फिर उस एकनाथ ने कुत्ते के मुंह से बाटी निकली , वह बाटी कुत्ते की लार से पूरी गीली हो गई थी , बाटी हात में लेकर कुत्ते को गोदी में उठाकर वापस मंदिर के तरफ जाने लगा , और उसने उस कुत्ते की लार से भरी झुटी बाटी घी में पूरी डुबाकर फिर उस कुत्ते को दी , और कहा फिर जो तू सुखी बाटी लेकर खाने लगा तो तेरी हड्डी पसली एक कर दूंगा , घी वाली बाटी लेकर जाना, उस नास्तिक की आंखे खुल गई और उसने आखरी सवाल किया की कुत्ते का नाम राम क्यू रखा , उसने कहा देखो तो हर जगा राम है , मुझमें तुम्हारे भीतर, हर सजीव निर्जीव वास्तु में , फिर क्यों जाना मंदिर में मठ में , सब कुछ अपने भीतर है , यह सुनकर उस नास्तिक की आंखे खुल गई, और सत्य के दर्शन उसे उस दिन हो गए , उसने एकनाथ जी को धन्यवाद दिया और उनके पैर पड़कर हसते हंसते लौट गया।
बोध।। इस कहानी का बोध यह है, को सब कुछ अपने भीतर है , बस उसे जानना और समझना चाहिए, मन और कर्म साफ हो तो , ब्रह्म भी हम है और राम भी,
।।धन्यवाद।।